देश को 34 सालों के इंतजार के बाद आखिरकार शिक्षा नीति मिल ही गई। बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रस्ताव को मंजूरी दी।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्कूली शिक्षा सचिव अनिता करवाल के मुताबिक मौजूदा शिक्षा नीति को 1986 में तैयार किया गया और 1992 में संशोधित किया गया। एनपीई 1986 के कार्यान्वयन के बाद तीन दशक से अधिक का समय बीत चुका है। इस अवधि के दौरान हमारे देश, समाज, अर्थव्यवस्था और दुनिया में बड़े पैमाने पर महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। हम जिस तरह से रहते हैं, काम करते हैं और देश व दुनिया भर में सूचना और ज्ञान के आसान प्रवाह के साथ एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं, उन्हें नई तकनीकों ने परिवर्तित कर दिया है। देश और अर्थव्यवस्थाएं अब और अधिक जुड़ गए हैं। ज्ञानकोष में बहुत विस्तार हुआ है और अनुसंधान बहु-विषयक और अधिक परस्पर सहयोगी बन गया है। वैश्विक स्तर पर कुशल श्रमशक्ति की मांग की जाती है।
नवाचार वैश्विक नेतृत्व के मूल में है। यह इस संदर्भ में है कि शिक्षा क्षेत्र को 21वीं सदी की मांगों और लोगों व देश की जरूरतों के अनुरूप तैयार करने की आवश्यकता है। गुणवत्ता, नवाचार और अनुसंधान ऐसे स्तंभ हैं जिन पर भारत को वैश्विक ज्ञान प्रणाली में अपना स्थान बनाना है। यह स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आया है कि 21वीं सदी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और हमारे युवाओं को समर्थ बनाने के लिए एक नई शिक्षा नीति की आवश्यकता थी।
उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने बातया कि इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए शिक्षा नीति बनाने के लिए परामर्श प्रक्रिया जनवरी 2015 में शुरू की गई थी। सबसे पहले ग्राम स्तर से राज्य स्तर तक जमीनी स्तर पर परामर्श लगभग 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6600 खंड, 6000 शहरी स्थानीय निकायों, 676 जिलों और 36 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में एक व्यापक, समयबद्ध, भागीदारी, नीचे से ऊपर परामर्श प्रक्रिया, मई 2015 से अक्तूबर, 2015 के बीच की गई। इस दौरान मॉय गोव पोर्टल के माध्यम से भी विस्तृत चर्चा की गई।
नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्तूबर, 2015 को सरकार ने पूर्व मंत्रिमंडल सचिव स्वर्गीय टीएसआर सुब्रहमण्यण की अध्यकक्षता में 5-सदस्यीय समिति गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट 27 मई, 2016 को प्रस्तुत की थी। इसके बाद प्रारूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 24 जून, 2017 को, सरकार ने प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति ने 31 मई, 2019 को अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी।
राज्यों/संघराज्य क्षेत्रों की सरकारों और भारत सरकार के मंत्रालयों को डीएनईपी 2019 पर उनके विचारों और टिप्पणियों को आमंत्रित करने के लिए पत्र लिखे गए। प्रारूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 पर विभिन्न हितधारकों से प्राप्त लगभग दो लाख सुझावों एक तकनीकी सचिवालय और एनसीईआरटी द्वारा विश्लेषण किया गया था। इसके बाद, स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा के लिए गठित दो समितियों, ने तकनीकी सचिवालय और एनसीईआरटी द्वारा सुझावों पर प्रस्तुत विश्लेषणात्मक रिपोर्ट की जांच की। इस प्रकार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को तैयार करने से पहले मंत्रालय द्वारा प्रारूप एनईपी 2019 और उस पर प्राप्त सुझावों, विचारों और प्रतिक्रियाओं का गहन और व्यापक परीक्षण किया गया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को मंजूरी देने के लिए है जिसे डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने के लिए गठित समिति द्वारा तैयार किए गए प्रारूप एनईपी 2019 और उस पर प्राप्त हितधारकों की प्रतिक्रियाओं एवं सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है। एनईपी 2020 को पहुंच, समता, गुणवत्ता, जवाबदेही और वहनीयता के आधारभूत स्तंभों पर बनाया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय लोकाचार में निहित एक वैश्विक सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रणाली के निर्माण की परिकल्पना करती है, और इन सिद्धांतों के साथ संरेखित है, ताकि भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति के रूप में स्थापित किया जा सके।
1985 में राजीव गांधी ने बदला था मंत्रालय का नाम
नई शिक्षा नीति में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने की सिफारिश की गई है। 1985 में राजीव गांधी सरकार के दौरान शिक्षा मंत्रालय का नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय रखा गया था। उसी साल पहले एचआरडी मंत्री पीवी नरसिम्हा राव बने थे और 1986 में शिक्षा नीति आई थी।
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