नई शिक्षा नीति 2020 और 1986 की शिक्षा नीति में वैसे तो बहुत सारे अंतर हैं लेकिन सबसे बड़ा अंतर यह है कि अब स्कूलों में ‘10+2’ के स्थान पर ‘5+3+3+4’ व्यवस्था चलेगी। इसी तरह और भी कई बड़े बदलाव नई शिक्षा नीति के माध्यम से किए गए हैं।

1986 की शिक्षा नीति के तहत अब तक उच्च शिक्षा में कई विनियाम कार्य कर रहे थे। इनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, भारतीय वास्तुकला परिषद, भारतीय फार्मेसी परिषद, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद आदि अलग-अलग कार्य कर रही हैं। लेकिन अब नई शिक्षा नीति में विधि और चिकित्सा शिक्षा को छोड़कर बाकी पूरी उच्च शिक्षा को एक ही विनियामक के अंदर लाने का निर्णय किया गया है।

इसी तरह 1986 की शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा में स्नातक पाठ्यक्रम तीन साल का और स्नातकोत्तर दो साल का होता है। इसके अलावा एमफिल का भी पाठ्यक्रम किया जा सकता है। लेकिन नई शिक्षा नीति के तहत स्नातक पाठ्यक्रमों को तीन या चार साल का कर दिया गया है। वहीं, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में एक या दो साल की पढ़ाई करनी होगी। वहीं, एमफिल को खत्म किया जाएगा। इसके अलावा अब उच्च शिक्षा में बहुस्तरीय प्रवेश एवं निकासी व्यवस्था लागू किया गया है। इसके तहत यदि विद्यार्थी चाहे तो वह एक सेमेस्टर, एक साल, दो साल या तीन साल बाद पढ़ाई छोड़ सकता है। विद्यार्थी को एक साल की पढ़ाई पर सर्टिफिकेट, दो साल की पढ़ाई पूरी करने पर डिप्लोमा और तीन या चार साल की पढ़ाई पूरी करने पर डिग्री दी जाएगी। इसके बाद विद्यार्थी कुछ सालों के अंतराल के बाद यदि अपनी पढ़ाई आगे जारी रखना चाहेगा तो उसे वहीं से प्रवेश मिल जाएगा जहां से उसने पढ़ाई छोड़ी थी।

1986 की शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा अंग्रेजी में ही करनी होती है लेकिन अब नई शिक्षा नीति में इसमें बदलाव किया गया है। अब हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में भी ई-कोर्स किए जा सकेंगे।

1986 की शिक्षा नीति के तहत बोर्ड परीक्षाओं का महत्त्व सबसे अधिक होता है लेकिन नई शिक्षा नीति के तहत बोर्ड परीक्षा के भार को कम करने की पहल की गई है। इसके तहत बोर्ड परीक्षा को दो भागों में बांटा जा सकता है जो वस्तुनिष्ठ और विषय आधारित हो सकता है। विषयों को कठिन और सरल के रूप में बांटा जा सकेगा।

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