असर रिपोर्ट के हवाले से समीक्षा में कहा गया कि महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में सभी आयु वर्ग के बच्चों ने निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों की ओर रूख किया।
भारत की शिक्षा प्रणाली पर कोरोना का काफी प्रभाव पड़ा। महामारी के चलते मां-बाप बच्चों को निजी स्कूलों से हटाने को मजबूर हुए। इस वजह से उनके भविष्य पर प्रतिकूल असर पड़ा। संसद में सोमवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि स्थिति को सुधारने के लिए सरकारी स्कूलों पर ज्यादा खर्च की जरूरत है। ग्रामीण परिवेश के बच्चे इन्हीं स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
Economic Survey की रिपोर्ट में स्कूलों में छह से 14 वर्ष आयु वर्ग के ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों के दाखिले में गिरावट की बात कही गई। इसमें कहा गया है कि महामारी के दौरान आनलाइन शिक्षा की ओर झुकाव के कारण डिजिटल खाई की स्थिति में इजाफा हुआ। सर्वेक्षण सरकार के अध्ययन और असर जैसे गैर सरकारी एजेंसियों के सर्वे के पर आधारित रहा ।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से संसद में यह रिपोर्ट पेश की गई। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि असर (ग्रामीण रिपोर्ट) के सर्वे में यह पाया गया कि महामारी के दौरान छह से 14 वर्ष आयु वर्ग के ऐसे बच्चे जिनका स्कूलों में दाखिला नहीं हुआ है, उनकी संख्या 2018 के आंकड़े 2.5 फीसदी से बढ़कर 2021 में 4.6 फीसदी हो गई । इसमें कहा गया है कि दाखिले में गिरावट की दर सात से 10 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में अधिक रही।
असर रिपोर्ट के हवाले से समीक्षा में कहा गया कि महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में सभी आयु वर्ग के बच्चों ने निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों की ओर रूख किया। ऐसा कम लागत वाले निजी स्कूलों के बंद होने और अभिभावकों पर वित्तीय बोझ के कारण हुआ। कोरोना के चलते रोजगार जाने या फिर ठप होने की वजह से मां-बाप को आर्थिक दुश्वारी झेलनी पड़ी। इस वजह से वो बच्चों की पढञाई का खर्च उठाने में नाकाम रहे।
स्मार्ट फोन की उपलब्धता में हालांकि वृद्धि दर्ज की गई। यह वर्ष 2018 के 36.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021 में 67.6 प्रतिशत दर्ज की गई। रिपोर्टके मुताबिक निचली कक्षाओं के छात्रों को उच्च कक्षा के विद्यार्थियों की तुलना में आनलाइन क्लास के दौरान ज्यादा कठिनाई महसूस हुई। रिपोर्ट में कहा गया कि सरकारी स्कूलों की स्थिति को ठीक करने की जरूरत है, क्योंकि आबादी का एक बड़े तबके का ये स्कूल ही सहारा हैं।
Source link