Balochistan Liberation Army: पाकिस्तान के लोगों के पिछले कुछ दिन दहशत में गुजरे। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि Balochistan Liberation Army (BLA) के विद्रोहियों ने क्वेटा से पेशावर जा रही ट्रेन को हाईजैक कर लिया और मुसाफिरों को बंधक बना लिया। मंगलवार को हुए इस वाकये के बाद पाकिस्तानी फौज ने बड़ा ऑपरेशन चलाया। अब फौज का दावा है कि उसने सभी मुसाफिरों को छुड़ा लिया है।

फौज की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उसने ऑपरेशन में बीएलए के 33 विद्रोहियों को मार गिराया।

जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक किए जाने के बाद बीएलए के द्वारा बलूचिस्तान को अलग देश बनाए जाने को लेकर चल रहे आंदोलन के बारे में बारे में काफी कुछ लिखा-पढ़ा जा चुका है लेकिन एक दिलचस्प तथ्य यह जानना बाकी है कि इस ट्रेन का नाम जाफर एक्सप्रेस कैसे पड़ा? हाईजैक के इस अभियान को लीड करने वाला संगठन मजीद ब्रिगेड कौन है?

आइए, आपको इस बारे में बताते हैं।

1600 किमी का सफर तय करती है ट्रेन

पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी और बलूच आदिवासी नेता का नाम मीर जाफर खान जमाली था। उनके नाम पर ही इस ट्रेन का नाम जाफर एक्सप्रेस रखा गया। 20 साल पहले इस ट्रेन को शुरू किया गया था तब यह ट्रेन बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा और रावलपिंडी के बीच शुरू हुई थी और बाद में इसे खैबर पख्तूनख्वा के पेशावर तक बढ़ाया गया। यह ट्रेन लगभग 1600 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती है और इसके रास्ते में पाकिस्तान के कई शहर आते हैं।

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1971 में भी टूट चुका है पाकिस्तान। (Source-@CMShehbaz
/X)

जाफर एक्सप्रेस पर पहले भी बलूच विद्रोहियों के द्वारा हमले होते रहे हैं। पिछले साल 26 अगस्त से 10 अक्टूबर तक इस ट्रेन का संचालन रोकना पड़ा था क्योंकि बलूच विद्रोहियों की ओर से सिलसिलेवार बम धमाके किए गए थे और इसका रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर पर खराब असर हुआ था।

आइए, यह भी जानते हैं कि बीएलए और मजीद ब्रिगेड क्या है? बीएलए का नाम 2000 के दशक की शुरुआत में तेजी से चर्चा में आया था, तब इस संगठन ने बलूचिस्तान की आजादी के लिए जंग लड़ने का काम शुरू किया था। इसकी सक्रियता को देखते हुए पाकिस्तान ने 2006 में इस संगठन पर बैन लगा दिया था और 2019 में अमेरिका ने इसे वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था।

आत्मघाती दस्ता है बीएलए का मजीद ब्रिगेड

मजीद ब्रिगेड बीएलए का आत्मघाती दस्ता है। इस दस्ते का नाम दो भाइयों के नाम पर रखा गया है, जिन्हें मजीद लैंगोव कहा जाता था। अलग बलूचिस्तान के लिए चल रहे विद्रोह में इन दोनों भाइयों का इतिहास बेहद अहम है। आइए, थोड़ा पीछे चलते हैं।

मई 1972 में, National Awami Party (NAP) बलूचिस्तान की सत्ता में आई थी। NAP लंबे समय से पाकिस्तान में क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग को लेकर आवाज उठा रही थी और 1971 में बांग्लादेश के अलग होने से उसकी आवाज को ताकत मिली। लेकिन उस वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने NAP की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन बलूच विद्रोहियों ने अलग देश की मांग को जारी रखा। इससे बलूचिस्तान में कानून-व्यवस्था खराब होने लगी।

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नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह का काठमांडू में स्वागत करते समर्थक। (REUTERS/Navesh Chitrakar)

फरवरी, 1973 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने NAP की सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद बलूच विद्रोही और पाकिस्तान की फौज आमने-सामने आ गए। 1973 से 1977 के बीच बीएलए के हजारों लड़ाके और पाकिस्तानी फौज के भी कई जवान मारे गए।

मजीद सीनियर की मौत कैसे हुई?

मजीद लैंगोव सीनियर उस वक्त युवा थे। उन्होंने जुल्फिकार अली भुट्टो की हत्या करने की ठानी। 2 अगस्त, 1974 को जब भुट्टो क्वेटा में एक जनसभा में शामिल होने के लिए पहुंचे तो मजीद सीनियर एक पेड़ पर चढ़े हुए थे और उनके हाथ में ग्रेनेड था। वह भुट्टो को मारने के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार थे। लेकिन ग्रेनेड मजीद लैंगोव सीनियर के हाथ में ही फट गया और मौके पर ही उनकी मौत हो गई।

पाकिस्तानी फौज के हाथों मारे गए मजीद जूनियर

मजीद सीनियर की मौत के दो साल बाद उनके छोटे भाई मजीद लैंगोव जूनियर का जन्म हुआ। 17 मार्च 2010 को, पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने क्वेटा में एक घर को घेर लिया। इस घर में बलूच लड़ाके छिपे हुए थे। घर के अंदर मौजूद मजीद जूनियर ने पाकिस्तानी सेना का मुकाबला किया और वह मारे गए।

मजीद जूनियर की मौत के बाद बलूचिस्तान में उन्हें बड़े पैमाने पर श्रद्धांजलि दी गई क्योंकि दोनों भाइयों ने अलग बलूचिस्तान के लिए अपनी जान दी थी तो दोनों भाइयों को बलूचिस्तान में वीरता का प्रतीक माना जाने लगा। कई साल बाद जब बीएलए के नेता असलम अचू ने आत्मघाती दस्ता बनाने का फैसला किया तो इसका नाम ‘मजीद ब्रिगेड’ रखा गया।

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औरंगजेब को लेकर नहीं थम रही बहस। (Source-Instagram/@maddockfilms)

मजीद ब्रिगेड ने दिया कई वारदातों को अंजाम

मजीद ब्रिगेड ने पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में कई बड़े हमले किए हैं। मजीद ब्रिगेड ने अपना पहला आत्मघाती हमला 30 दिसंबर, 2011 को किया। इस हमले में कम से कम 14 लोग मारे गए और 35 घायल हुए। इसके बाद यह संगठन कुछ समय तक शांत रहा लेकिन 2018 में फिर से सक्रिय हुआ। 2018 में मजीद ब्रिगेड ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के पास दलबंदिन में चीनी इंजीनियरों की बस पर हमला किया गया। 2018 में इसने कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास (Chinese Consulate) पर हमला किया।

2019 के ग्वादर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल और 2020 में कराची स्टॉक एक्सचेंज पर हमला किया। मार्च, 2024 में बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट के पास एक परिसर पर किया गया हमला भी शामिल है। इसमें पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के कई जवानों की मौत हो गई थी।

बलूच विद्रोहियों के निशाने पर है CPEC

बलूच विद्रोहियों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के लिए चल रहे काम में शामिल चीनी कर्मचारियों और CPEC के इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया है। बलूचिस्तान के नेता अपने सूबे के पिछड़ेपन के लिए पाकिस्तान की हुकूमत को दोषी ठहराते हैं। वे यह भी आरोप लगाते हैं कि बलूचिस्तान के संसाधनों पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लोगों का कब्जा है।

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