इंटरनेट के माध्यम से विद्यार्थियों व शिक्षकों के बीच एक आभासी कक्षाएं चलती हैं। लेकिन भारत जैसे देश में आॅनलाइन शिक्षा माध्यम का विस्तार इतना आसान नहीं है, क्योंकि देश की आबादी का अधिकांश हिस्सा अभी भी गांवों में रहता है, जहां अभी इंटरनेट की सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं है। सरकार ने एलान किया था कि स्कूल-कॉलेज बच्चों के लिए आॅनलाइन शिक्षा की व्यवस्था करें।
इसके बाद से आॅनलाइन पढ़ाई के लिए जूम, स्काइप व गूगल मीट जैसे अनुप्रयोगों का सहारा लिया गया। जो बड़े शहरों में तो मुमकिन हो गया, लेकिन गांव के स्कूल-कॉलेजों के लिए यह चुनौती बन गया है। अधिकांश गांवों में इंटरनेट की पहुंच तो दूर, खस्ताहाल नेटवर्क की वजह से फोन पर बात करना भी मुमकिन नहीं है। बहुत-से बच्चों के घरों में स्मार्टफोन नहीं है। ऐसे में आॅनलाइन कक्षाएं वास्तविक कक्षाओं का विकल्प नहीं हो सकती हैं।
’संदीप सिंह, आइआइएमसी, दिल्ली
कोरोना की आड़ में
कोरोना एक वैश्विक महामारी है। लेकिन भारत में सरकारों ने जनता को खामोश रखने और अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए इसे हथियार की तरह प्रयोग करना शुरू कर दिया है। ग्राम प्रधान से लेकर विधानसभा चुनाव में रैली-भीड़ जुटाने के लिए कोरोना नहीं है, लेकिन जब मजदूर, छात्र, किसान, सरकारी कर्मचारी, छोटे व्यापारी या विपक्षी दल सरकार की गलत नीतियों का विरोध करते हैं तो उन्हें कोरोना के नाम पर जेल में बंद कर दिया जाता है।
कोरोना के नाम पर अरबों रुपए करों और सेस के रूप में सरकार ने वसूले, लेकिन जब बात आई राज्य सरकारों और जनता को देने की तो सरकार कर्ज दे रही है। जनता के साथ ऐसा दुर्व्यवहार तो क्रूर अंग्रेजी शासन में भी नहीं होता था। बात सिर्फ आंदोलन तक सीमित नहीं है। कोरोना के नाम पर अब तो संवैधानिक संस्थाओं को भी कमजोर किया जा रहा है। लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही सबसे बड़ी होती है। लेकिन सरकारें हिटलर नीति अपना कर जनता को खामोश करने में लगी हुई हैं।
’गंगाधर तिवारी, लखनऊ
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