Teacher’s Day 2020: हर साल 05 सितंबर को डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती देश भर में शिक्षक दिवस के रूप में मनाई जाती है। ऐसा क्यों किया जाता है, ये जानने के लिए आइये उनके जीवन और दर्शन पर थोड़ा प्रकाश डालते हैं। राधाकृष्णन का जन्म आंध्र प्रदेश के तिरुत्तनी में 1888 में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बुद्धि से तेज थे इसलिए छात्रवृत्ति के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी करते थे। उन्होनें दर्शनशास्त्र में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की और 1917 में ‘द फिलॉसॉफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर ’पुस्तक लिख डाली। अपनी इस किताब के साथ उन्होनें भारतीय दर्शन को विश्व मानचित्र पर रख दिया।
वह चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाने गए। प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में वे छात्रों के बीच लोकप्रिय थे और सबके सबसे चहेते शिक्षक थे। बाद में उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय दोनों के कुलपति के रूप में कार्य किया। 1939 में, वह ब्रिटिश अकादमी फेलोशिप के लिए चुने गए। एक महान विद्वान, दार्शनिक और भारत रत्न से सम्मानित राधाकृष्णन 1952 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने और 1962 में 1967 तक देश के दूसरे राष्ट्रपति की भूमिका निभाई।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान (1962-67) उनके छात्रों और दोस्तों ने उनसे अपना जन्मदिन मनाने का अनुरोध किया। उन्होंने जवाब दिया, “यदि मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय, 05 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, तो यह मेरा गौरवपूर्ण सौभाग्य होगा।” तभी से, उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
उन्हें 1984 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न और 1963 में ब्रिटिश ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। 17 अप्रैल 1975 को उनका निधन हो गया और तब तक वह 11 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किए जा चुके थे। अपनी सभी उपलब्धियों और योगदान के बावजूद, राधाकृष्णन जीवन भर एक शिक्षक रहे। भारत के पहले उपराष्ट्रपति की स्मृति को सम्मानित करने और हमारे जीवन में शिक्षकों के महत्व को याद करने के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार उनके बारे में कहा था, “उन्होंने कई क्षमताओं में अपने देश की सेवा की है। लेकिन सबसे बढ़कर, वह एक महान शिक्षक हैं जिनसे हम सभी ने बहुत कुछ सीखा है और सीखते रहेंगे।”
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