भारतीय थल सेना की महिला अधिकारियों के लिए पर्मानेन्‍ट कमीशन का फैसला सुनाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने जल सेना में सेवारत महिला अधिकारियों के लिए भी पर्मानेंट कमीशन का रास्‍ता साफ कर दिया है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने मंगलवार को कहा, “सेना में महिला अधिकारियों के प्रवेश की अनुमति देने के लिए वैधानिक बार हटा लिए जाने के बाद अब पुरुष और महिला अधिकारियों को समान ओहदा प्राप्‍त होगा।” सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि रिक्त पदों की उपलब्धता के आधार पर स्थायी कमीशन के लिए सेवारत महिला अधिकारियों के आवेदनों पर तीन महीने के भीतर विचार किया जाना चाहिए।

अदालत ने केंद्र द्वारा पेश की गई 2008 की पॉलिसी पर सुनवाई की, जिसमें महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन की अनुमति तो दी, लेकिन सेवारत अधिकारियों को इससे वंचित रखा गया। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक सितंबर 2015 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसमें यह माना गया था कि स्थायी कमीशन के लिए सेवारत महिला अधिकारियों को बाहर रखने का कोई ठोस कारण नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने स्थाई कमीशन देने में महिला अधिकारियों की शारीरिक सीमाओं का हवाला देते हुए केंद्र की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह “लैंगिक रूढ़ियां” (gender stereotypes) हैं। पीठ ने कहा कि सेवारत महिलाओं को पर्मानेंट कमीशन से वंचित रखने का फैसला भेदभावपूर्ण है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- “पुरुष तथा महिला अधिकारी नौसेना में एकसमान सेवाएं दे सकते हैं तथा इनमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।”

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