Supreme Court News: देश की सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की लगातार आ रही सुसाइड की रिपोर्ट्स पर चिंता जाहिर की है। इसके चलते छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने और उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों के सुसाइड को रोकने के लिए पूर्व जज एस रविंद्र भट की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स का गठन किया है। कोर्ट ने कहा कि छात्रों की आत्महत्या दर कृषि संकट से जूझ रहे किसानों के सुसाइड रेट से ज्यादा हो गई है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या के विभिन्न मामलों का उल्लेख किया है। कोर्ट ने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों सहित उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या की बार-बार होने वाली घटनाएं चिंताजनक हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने बनाई टास्क फोर्स
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये बढ़ती घटनाएं संकेत देती हैं कि परिसरों में छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने और उन्हें आत्महत्या करने जैसा चरम कदम उठाने से रोकने में मौजूदा कानूनी और संस्थागत ढांचा खास प्रभावी नहीं है। कोर्ट ने छात्रों के सुसाइड के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए एक 10 सदस्यीय टास्क फोर्स बनाई है, जिसमें समाज के कई क्षेत्रों के लोग शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टास्क फोर्स क्या
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित टास्क फोर्स एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसमें छात्रों द्वारा आत्महत्या के प्रमुख कारणों की पहचान की जाएगी। इसमें रैगिंग, जाति-आधारित भेदभाव, लिंग-आधारित भेदभाव, यौन उत्पीड़न, शैक्षणिक दबाव, वित्तीय बोझ समेत धार्मिक विश्वास या किसी अन्य आधार पर भेदभाव शामिल होंगे। इतना ही नहीं, यह टास्क फोर्स उच्च शिक्षण संस्थानों पर लागू वर्तमान कानूनों, नीतियों और संस्थागत ढांचे की प्रभावशीलता का भी गहन मूल्यांकन करेगा।
यह टास्क फोर्स इस बात का भी मूल्यांकन करेगा कि क्या ये ढांचे छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान करते हैं, और जहां आवश्यक हो वहां सुरक्षा को मजबूत करने की सिफारिश करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने यह बयान दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर दिया गया, जिसमें आईआईटी दिल्ली के दो छात्रों के माता-पिता द्वारा दायर FIR दर्ज करने की याचिकाओं को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
केस को क्या है मृतकों के माता पिता के आरोप?
केस को लेकर मृतक छात्रों के अभिभावकों ने आरोप लगाया कि आयुष आशना और अनिल कुमार की ‘वास्तविक तथ्यों को छिपाने के लिए आईआईटी सदस्यों की साजिश के तहत हत्या की गई और दोनों छात्रों को गलत तरीके से आत्महत्या करते हुए दिखाया गया है। शिकायत में दावा किया गया कि अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले छात्रों ने अपने अभिभावकों को आईआईटी दिल्ली के संकाय या कर्मचारियों द्वारा जातिगत भेदभाव के बारे में बताया था और संकाय पर असली दोषियों को बचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
हालांकि, जांच करने वाली पुलिस ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया और निष्कर्ष निकाला कि दोनों छात्रों ने डिप्रेशन के कारण आत्महत्या की, क्योंकि वे कुछ परीक्षाओं में पास नहीं हो पाए थे। पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार, आशना की ग्रेड रिपोर्ट से पता चला है कि 2022-2023 के दूसरे सेमेस्टर के दौरान, वह सात में से पांच विषयों में फेल हो गया, और उसे ग्रेड एफ मिला, जिसका मतलब बहुत खराब होता है।
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