रिपोर्ट: थिंकटैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी (सीसीएस) ने केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के साथ मिलकर एक प्रोग्रेस रिपोर्ट जारी किया है। ‘प्रोग्रेस रिपोर्ट-2020 ऑन इम्प्लिमेंटिंग द स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट’ नामक इस रिपोर्ट ने स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के अनुपालन से संबंधित अनेक खामियों को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार एक्ट को पास हुए छह वर्ष बीत जाने के बाद भी देश के कई राज्यों ने अबतक अपने यहां इस स्कीम को नोटिफाइ नहीं किया है। कई राज्यों ने अपने यहां रूल्स तक नोटिफाइ नहीं किये हैं। रिपोर्ट में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के अनुपालन के बाबत देश के 28 राज्यों की प्रगति की विवेचना की गई है। साथ ही 35 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में इस कानून से संबंधित स्कीम्स और रूल्स लागू करने का भी अध्ययन किया गया है।

सेंटर फॉर सिविल सोसायटी द्वारा ऑनलाइन जारी किये गए तीसरे वार्षिक प्रोग्रेस रिपोर्ट-2020 के मुताबिक कई राज्यों ने रेहड़ी पटरी व्यवसायियों की आजीविका संरक्षित के मूल उद्देश्य के विपरीत आजीविका की राह को कृत्रिम रूप से और मुश्किल बनाने का कार्य किया है। रिपोर्ट में राज्यों द्वारा गठित शहरी स्थानीय निकायों की संख्या और उनके प्रदर्शन के आधार पर आंध्र प्रदेश को सबसे बेहतर राज्य बताया गया है, जबकि आसाम को सबसे फिसड्डी राज्य पाया गया है। कई राज्यों द्वारा वेंडर्स से डोमिसाइल प्रूफ और वोटर आईडी दिखाने जैसे प्रावधान अलग से शामिल कर लिये गए हैं तो कई राज्यों नें वेंडर्स के खराब व्यवहार के आधार पर वेंडिंग सर्टिफिकेट को निरस्त किए जाने का प्रावधान किया है। जबकि ऐसे प्रावधान मूल कानून का हिस्सा ही नहीं हैं।

रिपोर्ट जारी करने के दौरान एक पैनल परिचर्चा ‘आत्मनिर्भरता: प्रोटेक्टिंग वेंडर लाइवलीहुड्स इन द वेक ऑफ कोविड -19′ को संबोधित करते हुए सीसीएस के एसोसिएट डायरेक्टर एड. प्रशांत नारंग ने वोटर आईडी और डोमिसाइल प्रूफ मांगे जाने को गैर जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि जब कोई दुकान खोलने या अन्य व्यवसाय को शुरु करने के लिए किसी प्रूफ की जरूरत नहीं होती तो फिर रेहड़ी पटरी व्यवसायियों के लिए अलग प्रावधान क्यों? परिचर्चा के दौरान सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता इंदिरा उन्नीनायर ने कहा कि वेंडर्स की आजीविका को संरक्षित करने के लिये वर्ष 2014 में ही कानून पारित हो गया लेकिन प्रशासन और सरकारी मशीनरी का रवैया वेंडर्स को लेकर अब भी पक्षपात पूर्ण है है। इस मौके पर नेशनल हॉकर्स फेडरेशन के महासचिव मनोज मेहरा ने भी विचार रखे।

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