Senior Citizens Property Dispute: भारतीय समाज में यह सवाल कई बार उठता है कि क्या सीनियर सिटीजन अपने बच्चों या रिश्तेदारों को अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं? क्योंकि कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं कि बच्चे या रिश्तेदार बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित करते हैं। ऐसे ही एक मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसमें अदालत ने एक सीनियर सिटीजन के द्वारा अपने बेटे को घर से निकालने के लिए दायर किए गए मुकदमे को खारिज कर दिया।
यह मुकदमा Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 (Senior Citizens Act) के तहत दायर किया गया था। यह Act बुजुर्ग माता-पिता, जो अधिकतर मामलों में उपेक्षित होते हैं और जिनके पास कोई आर्थिक सहारा नहीं होता, उन्हें अपने बच्चों से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए एक रास्ता देता है।
हालांकि यह Act माता-पिता को अपने बच्चों या रिश्तेदारों को घर से निकालने का अधिकार नहीं देता लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रॉपर्टी ट्रांसफर्स से संबंधित कुछ परिस्थितियों में ऐसा करने की अनुमति दी है।
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क्या कहता है ये Act?
Senior Citizens Act 60 साल से अधिक उम्र के ऐसे माता-पिता, जो अपनी कमाई या संपत्ति से गुजारा नहीं चला सकते, उन्हें अपने बच्चों या रिश्तेदारों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए मुकदमा दायर करने की अनुमति देता है। Senior Citizens Act बच्चों या रिश्तेदारों पर माता-पिता की जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी डालता है जिससे वे भी सामान्य जीवन जी सकें। इसके लिए विशेष ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं जो इस तरह के मुकदमों में सुनवाई करते हैं।
Senior Citizens Act की धारा 23 क्या है?
यह भी समझना जरूरी होगा कि Senior Citizens Act की धारा 23 क्या कहती है। यह धारा कहती है कि अगर माता-पिता अपनी संपत्ति दे देते हैं या ट्रांसफर कर देते हैं, उसके बाद भी maintenance यानी भरण-पोषण हासिल कर सकते हैं। धारा 23(1) के तहत कोई सीनियर सिटीजन अपनी संपत्ति को यह शर्त रखकर दे सकता है कि जिसे यह संपत्ति दी गई है, वह उन्हें “बुनियादी सुविधाएं और शारीरिक जरूरतें” उपलब्ध कराएगा।
अगर यह शर्त पूरी नहीं होती है तो यह माना जाएगा कि संपत्ति का ट्रांसफर “धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गलत प्रभाव” के तहत किया गया है और अगर सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल के पास जाते हैं तो उसके पास इसे रद्द करने का अधिकार होगा।
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Senior Citizens Act की धारा 23(2) कहती है कि सीनियर सिटीजन को अपनी संपत्ति से भरण-पोषण हासिल करने का पूरा अधिकार है और अगर यह संपत्ति (पूरी तरह या आंशिक रूप से) ट्रांसफर हो जाती है तो यह अधिकार नए मालिक के खिलाफ लागू हो सकता है, बशर्ते उसे इस बारे में जानकारी हो।
बहू को निकालने की मांग पर क्या कहा था?
साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट को एक मामले में फैसला करना था जिसमें बुजुर्ग माता-पिता और उनके बेटे ने अपनी बहू (daughter-in-law) को घर से निकालने की मांग की थी और उन्होंने Senior Citizens Act के तहत ही मुकदमा दर्ज किया था। इन दोनों पक्षों के बीच कुछ और मुकदमे भी चल रहे थे जैसे तलाक का मामला व अन्य।
जून 2015 में, बेंगलुरु के नॉर्थ सब डिवीजन के सहायक आयुक्त ने फैसला दिया था कि यह प्रॉपर्टी माता-पिता की है और बहू का उस पर कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह वहां सिर्फ रह रही थी। बहू ने इस फैसले के खिलाफ 2020 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि Women from Domestic Violence Act, 2005 के तहत बहू को घर से निकाला नहीं जा सकता, भले ही उसका उस घर पर कोई अधिकार ना हो। लेकिन शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि क्या Senior Citizens Act के तहत ट्रिब्यूनल बेदखल करने या घर से निकालने का आदेश दे सकता है या नहीं?
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तत्कालीन CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने फैसला दिया कि ट्रिब्यूनल बेदखली का आदेश दे सकता है, “अगर यह सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और सुरक्षा के लिए जरूरी हो”। कोर्ट ने कहा कि धारा 23(2) में बेदखल करने का अधिकार शामिल है।
अदालत ने यह भी माना कि अगर बच्चे या रिश्तेदार सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को पूरा नहीं करते हैं तो ट्रिब्यूनल उन्हें संपत्ति से बेदखल करने का आदेश दे सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि बेदखल करने का आदेश देने से पहले दूसरे पक्ष के दावों पर विचार करना जरूरी है।
अब सवाल यह है कि जो मामला अदालत में आया था, उसमें सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को घर से निकालने से इनकार क्यों किया?
इस मामले में माता-पिता ने अपने बेटे को घर से निकालने के लिए मुकदमा दायर किया था। उन्होंने अदालत से कहा कि उनका बेटा उनकी देखभाल नहीं कर रहा और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान कर रहा है। 2019 में, ट्रिब्यूनल ने माता-पिता को राहत दी और बेटे को आदेश दिया कि वह माता-पिता की अनुमति के बिना घर में दखल न दे। ट्रिब्यूनल ने उसे अपनी बर्तन की दुकान और अपने परिवार के साथ रहने वाले कमरे तक ही रहने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचे माता-पिता
ट्रिब्यूनल ने कहा कि अगर बेटा फिर से गलत व्यवहार करता है तो उसे बेदखल करने की कार्यवाही फिर से शुरू की जा सकती है। इस आदेश के खिलाफ माता-पिता ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन अदालत ने कहा कि “ऐसी कोई शिकायत या सबूत रिकॉर्ड पर नहीं है जिससे ऐसा लगे कि ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद बेटे ने अपने माता-पिता को अपमानित किया हो”। अदालत ने यह भी कहा कि हर मामले में बेदखल करने का आदेश देना जरूरी नहीं है।
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