चंडीगढ़ः भारत सरकार ने पहले खुद कोर्ट में ये दावा किया था कि धीरज शर्मा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका सही नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए।
सरकार अपनी हो तो कुछ भी हो सकता है। वो भी IIM जैसे अहम संस्थान में भी। सुनने में हैरत भरा लगेगा लेकिन ये सच है कि केंद्र सरकार ने इस अहम संस्थान की बागडोर ऐसे शख्स के हाथों में सौंप दी जिसके पास जरूरी शैक्षणिक योग्यता ही नहीं है। उस पर भी तुर्रा ये कि सरकार मानने को तैयार ही नहीं थी कि निदेशक की नियुक्ति में उसने गलती की। खास बात है कि इसी शख्स को फिर से दूसरा कार्यकाल भी मिल गया है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक सोमवार को मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में माना कि धीरज शर्मा को IIM का निदेशक बनाया गया, बावजूद इसके कि अंडर ग्रेजुएट लेवल पर वो सेकेंड डिवीजन में पास हुए थे। रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान पहले इस तथ्य से इन्कार किया था। सच भी तब बताया जब धीरज शर्मा का पहला कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें दूसरे सत्र के लिए भी नियुक्ति पत्र मिल गया। यहां निदेशक के पद पर नियुक्त होने के लिए बैचलर्स या अंडरग्रेजुएट में फर्स्ट क्लास की डिग्री होनी चाहिए।
आरटीआई कार्यकर्ता अमिताव चौधरी ने ये याचिका दायर की है। धीरज शर्मा की इस नियुक्ति में अनियमितताएं हैं, ये मामला सितंबर 2021 में ही उठा था। आरोप लगे थे कि धीरज शर्मा ने नियुक्ति के लिए अपनी अंडरग्रेजुएट की डिग्री पेश नहीं की थी। जबकि मंत्रालय ने इसे लेकर उन्हें तीन बार पत्र लिखा था।
खास बात ये है कि भारत सरकार ने पहले खुद कोर्ट में ये दावा किया था कि धीरज शर्मा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका सही नहीं है और इसे खारिज किया जाना चाहिए। उन्होंने पिछले साल फरवरी महीने में दायर किए अपने पहले हलफनामे में कहा था कि शर्मा की नियुक्ति तय प्रक्रिया के तहत की गई है और इसे सही करार दिया जाना चाहिए।
मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा कि डॉ. धीरज शर्मा की बैचलर्स डिग्री सेकेंड डिवीजन की है। ये आईआईएम रोहतक के निदेशक पद के लिए जरूरी योग्यता के अनुरूप नहीं है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि मंत्रालय अब जांच कर रहा है कि किस तरह शर्मा को नियुक्त किया था और इसके लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं?
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