Tamil Nadu Delimitation Protest: परिसीमन को लेकर विपक्ष एकजुट हो रहा है और इससे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है। विपक्षी दलों ने परिसीमन के मुद्दे पर 22 मार्च को चेन्नई में बड़ी बैठक बुलाई है। यह बैठक चेन्नई में होगी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन परिसीमन के खिलाफ चल रहे अभियान की अगुवाई कर रहे हैं।
परिसीमन को लेकर सीधी और साफ बात यह है कि दक्षिण के राज्यों को इस बात का डर है कि 2026 में जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन की वजह से उनके राज्यों का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कम हो जाएगा, कुछ ऐसी ही चिंता पूर्वी राज्यों की भी है।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का कहना है कि यह दिन भारत के इंडियन फेडरेलिज्म के लिए ऐतिहासिक होगा। उन्होंने वीडियो जारी कर कहा है कि जिन राज्यों ने जनसंख्या बढ़ोतरी के मामले में अच्छा काम किया है और देश की तरक्की में योगदान दिया है, उन्हें परिसीमन के द्वारा सजा नहीं दी जानी चाहिए। स्टालिन ने कहा कि परिसीमन भारत में फेडरेलिज्म की हर नींव पर जोरदार प्रहार करेगा और लोकतंत्र के अर्थ को ही खत्म कर देगा।
कौन से नेता होंगे शामिल?
यह बैठक 10 बजे चेन्नई के आईटीसी ग्रैंड चोला होटल में शुरू होगी और दोपहर तक चलेगी। इस दौरान लंच का भी आयोजन होगा और बड़ी संख्या में विपक्षी दलों के नेता इसमें शामिल होंगे। बैठक में क्रमश: केरल, तेलंगाना और पंजाब के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, ए रेवंत रेड्डी और भगवंत मान, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, बीजू जनता दल (बीजेडी) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के बड़े नेता शिरकत करेंगे।
पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही टीएमसी को भी बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन पार्टी ने इसमें किसी भी प्रतिनिधि को नहीं भेजने का फैसला किया है। बैठक में दक्षिण के सभी राज्य शामिल हैं लेकिन आंध्र प्रदेश की इसमें कोई भागीदारी नहीं होगी। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में एनडीए की सरकार चल रही है।
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क्या है बैठक का मुख्य एजेंडा?
इस बैठक के प्रमुख बिंदुओं में परिसीमन का जो मौजूदा ढांचा है (1971 की जनगणना पर आधारित) उसे 2026 से आगे 30 वर्षों के लिए बढ़ाने की मांग करना, 2026 की परिसीमन प्रक्रिया पर पुनर्विचार की मांग और इससे जुड़े प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार करना, किसी तरह की गड़बड़ी पर उसे कानूनी चुनौती देना और इससे प्रभावित होने वाले राज्यों में इसे लेकर जन जागरूकता अभियान चलाना मुख्य है।
परिसीमन का विरोध राष्ट्रीय आंदोलन बना- स्टालिन
मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु ने इसका बीड़ा उठाया और यह राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है। उन्होंने कहा कि देश भर के राज्य इसे लेकर आगे आ रहे हैं और ऐसे में यह सिर्फ बैठक से आगे बढ़कर एक आंदोलन की शुरुआत है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंंत रेड्डी ने भी इस लड़ाई को फेडरल इक्वलिटी की लड़ाई बताया है। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि इसे लेकर दलगत राजनीति से ऊपर उठने की जरूरत है।
कुछ दिन पहले पंजाब में भी कांग्रेस के नेताओं ने इस बात की आशंका जताई थी कि परिसीमन की वजह से उनके राज्य को नुकसान हो सकता है।
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क्या कहते हैं दक्षिण के राज्य?
विपक्ष ने परिसीमन को लेकर पिछले काफी समय से माहौल बनाया हुआ है कि जनगणना के आधार पर होने वाला परिसीमन दक्षिणी राज्यों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर देगा। उनके मुताबिक, इससे उनकी लोकसभा सीटें तो कम होंगी ही, पॉलिसी बनाने और बजट मिलने में भी उनका रोल कमजोर हो जाएगा और ऐसे राज्यों को ज्यादा फायदा होगा जिनकी आबादी ज्यादा है।
दक्षिण के राज्यों के विरोध के बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले महीने कोयंबटूर में कहा था कि पर परिसीमन से दक्षिणी राज्यों की एक भी संसदीय सीट कम नहीं होगी हालांकि डीएमके का कहना है कि शाह का बयान राजनीतिक था।
सीटों के परिसीमन की प्रक्रिया अगले साल जनगणना के बाद होगी जिसमें लोकसभा सीटों को जनसंख्या के नए आंकड़ों के आधार पर उन्हें पुनर्गठित किया जाएगा। दक्षिण के राज्यों के मुताबिक, उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण करके दिखाया है, अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो इससे उन्हें नुकसान होगा। जबकि ऐसे राज्य जहां जनसंख्या ज्यादा है उनकी सीटें बढ़ जाएंगी और उनकी राजनीतिक ताकत भी बढ़ेगी।
निश्चित रूप से ऐसे में देश की राजनीतिक ताकत उत्तर भारतीय राज्यों के पास होगी और उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में बीजेपी काफी मजबूत है। देखना होगा कि विपक्ष के द्वारा शुरू किए गए इस अभियान के बीच क्या बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार परिसीमन को लेकर आगे बढ़ेगी और विपक्षी दलों की चिंताओं और सवालों का हल कैसे निकालेगी?
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