शिक्षा जगत पर पड़ रही कोरोना की मार और गहरी होती जा रही है। कोरोना संक्रमण से बचने और लॉकडाउन के मद्देनजर देश भर में शुरू हुई ऑनलाइन क्लासेज की पहल भी कमजोर पड़ती दिख रही है। छोटे शहरों में जहां स्कूल अभिभावकों द्वारा फीस नहीं दिए जाने से परेशान हैं, वहीं बड़े शहरों में अभिभावक फीस में किसी तरह की रियायत नहीं मिलने से परेशान हो रहे हैं। प्राइवेट स्कूलों में टीचर्स की नौकरियां जा रही हैं, तनख्वाह कम हो रही है तो सरकारी क्षेत्र में भी सैलरी संकट खड़ा होता दिख रहा है।
सैलरी संकट की स्थिति तो नहीं? अगस्त के पहले सप्ताह तक दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को जुलाई को वेतन नहीं मिल पाया था। दिल्ली स्थित श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के करीब 400 नियमित और ठेके पर पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिए यह अप्रत्याशित है। उनका कहना है कि उन्हें हर महीने के अंतिम कार्यदिवस पर वेतन मिल जाया करता था। अगर कभी देरी हुई भी तो एक-दो दिन से ज्यादा नहीं, वह भी ऐसा वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने (मार्च) में ही होता है। शास्त्री यूनिवर्सिटी के वीसी रमेश पांडे का कहना है कि यूजीसी से फंड मंजूर हो चुका था, इस बार पैसा आने में किसी वजह से देर हो गई।
बात इन दो विश्ववि़द्यालयों तक ही सीमित नहीं है। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले 12 कॉलेजों के टीचर्स व स्टाफ को तीन महीने से वेतन नहीं मिला। इनका पैसा दिल्ली सरकार से आता है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि पांच साल में 70 फीसदी बजट बढ़ाने के बावजूद कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है तो यह भ्रष्टाचार का संकेत है।
निजी कॉलेजों का हाल तो बुरा बताया जा रहा है। कई निजी कॉलेजों ने टीचर्स और स्टाफ में कटौती कर ली है। इन्हें या तो हटा दिया गया है बिना वेतन के छुट्टी पर भेज दिया गया है।
स्कूलों का हाल: सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को कई राज्यों ने कोविड से जुड़े अलग-अलग कामों में लगा रखा है। उदाहरण के लिए, झारखंड में शिक्षकों को घर-घर जाकर राशन बांटना पड़ रहा है।
निजी स्कूलों की कहानी कुछ अलग ही है। देश के करीब आधे बच्चे इन स्कूलों में ही पढ़ते हैं। इन स्कूलों का कहना है कि वे शिक्षकों को तनख्वाह नहीं दे पा रहे, क्योंकि अभिभावक फीस नहीं भर रहे। कई स्कूलों ने टीचर्स को हटाया है या उनकी तनख्वाह काटी है। इसके बावजूद वे अभिभावकों से पूरी फीस मांग रहे हैं। यही नहीं, कुछ स्कूलों ने तो बच्चों को घर से स्कूल लाने-पहुंचाने के लिए ली जाने वाली ट्रांसपोर्ट फीस तक भी मांग ली। विरोध और सरकारी दखल के बाद उन्हें यह मनमानी वसूली रोकनी पड़ी।
मोटा मुनाफा: ये स्कूल इस साल फरवरी तक फीस एडवांस में लेते रहे हैं। वह भी एक साथ तीन महीने की। ट्यूशन फीस के अलावा भी कई तरह की फीस वसूलना इन स्कूलों में आम है। दाखिले के वक्त मोटी रकम ली ही जाती है। इन सबके अलावा सरकारी अंकुश के बावजूद ड्रेस व किताब की बिक्री से भी कमीशन लेना इन्होंने नहीं छोड़ा है। मौजूदा सत्र के लिए भी किताबों की बिक्री स्कूलों द्वारा तय फ्लिपलर्न जैसे प्लैटफॉर्म या विक्रेताओं के जरिए ही हुई है। इसके बावजूद कोरोना काल में ये स्कूल अभिभावकों को उचित रियायत तक देने के मूड में नहीं हैं, जबकि लगभग हर अभिभावक की कमाई किसी न किसी रूप में घटी है।
ग्रामीण इलाकों का यह हाल है कि कई निजी स्कूलों ने फीस पचास फीसदी तक कम कर दी है। इसके बावजूद अभिभावक भुगतान नहीं कर रहे। नतीजतन स्कूल भी धीरे-धीरे ऑनलाइन क्लास में दिलचस्पी कम करने लगे हैं। भुगतान की समस्या के स्वरूप में अंतर के अलावा शहरी और ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी, स्मार्टफोन या कंप्यूटर की उपलब्धता में भी अंतर है।
सेंट्रल स्क्वैयर फ़ाउंडेशन (CSF) के एक हालिया सर्वे के मुताबिक 66 फीसदी निजी स्कूलों में ऑनलाइन क्लास के लिए मुख्य माध्यम के तौर पर व्हाट्सऐप का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन स्कूलों के करीब 80 फीसदी शिक्षकों को मार्च से नियमित/पूरा वेतन नहीं मिला है। बता दें कि शहरी क्षेत्रों में करीब 75 फीसदी बच्चे निजी स्कूलों में ही पढ़ते हैं। देश में स्कूली छात्रों की संख्या 24 करोड़ है।
शहरी अभिभावकों का संघर्ष: शहरी क्षेत्रों में अभिभावक मोटी फीस में थोड़ी रियायत के लिए अपने-अपने स्तर पर और अलग-अलग तरीके से संघर्ष भी कर रहे हैं। कई राज्यों में सामूहिक संघर्ष भी चल रहा है। पर, अभी तक स्कूलों की ओर से ऐसी कोई पहल नहीं हुई है जो अभिभावकों को राहत पहुंचाने वाली हो।
सरकार से राहत नहीं: 16 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। तब से स्कूल-कॉलेज व अन्य शिक्षण संस्थान बंद हैं। सरकार ने यह निर्देश जरूर दिया है कि जब तक हालात ठीक न हो जाएं, तब तक अभिभावकों पर फीस के लिए स्कूल दबाव न डालें। लेकिन, फीस कम या माफ करने को लेकर न सरकार का कोई निर्देश है और न ही ऐसा निर्देश देने का रुख लगता है। गुजरात में लॉकडाउन पीरियड की फीस स्कूलों द्वारा नहीं वसूलने का ऑर्डर जारी हुआ तो हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
सरकारी निर्देशों का पालन भी नहीं: सरकार ने ऑनलाइन क्लासेज से जुडे दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें कक्षा एक से आठ तक के बच्चों के लिए एक दिन में 45-45 मिनट की दो कक्षाएं ही रखने के लिए कहा गया है। नौवीं से बारहवीं तक के छात्रों के लिए चार कक्षाएं रखी जा सकती हैं। इनकी एक कक्षा की अवधि 30 से 45 मिनट हो सकती है।
निजी स्कूल इन निर्देशों का पालन नहीं कर रहे। बड़े शहरों में कई स्कूल म्यूजिक, ताईक्वांडो, गेम, लाइब्रेरी आदि की क्लास भी ऑनलाइन ले रहे हैं। वे केजी-नर्सरी के बच्चों को भी ऑनलाइन क्लास करा रहे हैं। कई अभिभावक इसे एकदम गैरजरूरी और पूरी फीस वसूलने को वैध ठहराने की दलील देने का आधार भर मानते हैं। उनके विरोध के बावजूद स्कूलों ने ऐसी क्लास बंद नहीं की है।
कब खुलेंगे स्कूल? इस सवाल का अभी कोई ठोस जवाब नहीं आया है। इस बारे में मानव संसाधन मंत्रालय ने राय जरूर मंगवाई है, लेकिन अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
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