राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा या NEET, सभी मेडिकल कॉलेजों के लिए सिंगल एंट्रेंस एग्जाम है तथा देश के सभी माइनॉरिटी कॉलेजों को भी इसी परीक्षा के स्कोर के आधार पर ही छात्रों को एडमिशन देना होगा। यह फैसला देश की सर्वोच्च अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया जिसमें माइनॉरिटी कॉलेजों ने इस परीक्षा को अपने कॉलेजों में एडमिशन के लिए सही मानक नहीं बताया था और अदालत से यह गुहार लगाई थी कि इसकी अनिवार्यता खत्म कर दी जाए। मगर न्यायालय ने यह माना कि सिंगल एग्जाम ही एडमिशन का एकमात्र आधार होना चाहिए।
तीन न्यायाधीशों जस्टिस अरुण मिश्रा, विनीत सरन और एमआर शाह की बेंच ने अपने फैसले में कहा, “MCI अधिनियम (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट) और डेंटिस्ट एक्ट की धारा 10 डी में किए गए प्रावधानों द्वारा संविधान के अनुच्छेद 30 (संविधान के धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकार को सुरक्षित करता है) के तहत उपलब्ध अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जाता है।”
शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज़ में एडमिशन के लिए एक समान प्रवेश परीक्षा के नियम में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा क्योंकि यह पूरी तरह न्यायसंगत है। अपने फैसले में, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने निजी मेडिकल कॉलेजों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और राज्य सरकारों द्वारा NEET की जगह MBBS और BDS पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए अपनी प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की अर्जी को ठुकरा दिया।
बता दें, देश भर में मेडिसिन की पढ़ाई करने के लिए इस वर्ष की प्रवेश परीक्षा के लिए 15.9 लाख से अधिक छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया है।
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