यह पद संभालने के पहले डॉ. के सिवन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर रह चुके थे।

देश को चांद पर पहुंचने की राह दिखाने वाले इसरो चीफ डॉ. के सीवन एक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। एक गरीब परिवार से निकलकर न केवल अपना बल्कि देश का नाम रोशन करने वाले इस व्यक्ति की कहानी काफी प्रेरणादायक है। आइए जानते हैं कि किस उतार-चढ़ाव के बीच उन्होंने अपने जीवन में यह मुकाम हासिल किया।

डॉ. के सिवन का जन्म तमिलनाडु में 14 अप्रैल 1957 को एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना बचपन बेहद गरीबी में गुज़ारा है। उनके भाई और दो बहन गरीबी की वजह से पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे लेकिन सिवन बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज़ थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते उन्हें भी पढ़ाई पूरी करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी गांव के एक साधारण स्कूल से हुई है। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद के सिवन ने साल 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद उन्होंने IISC, बंगलुरु से इसी विषय से ME की डिग्री हासिल की और फिर बाद में IIT, मुंबई से 2006 में पीएचडी पूरी की है। बता दें कि अपने परिवार में ग्रेजुएशन करने वाले वह पहले व्यक्ति हैं।

एक इंटरव्यू में सिवन कहते हैं कि जब वह कॉलेज में थे तो अपने पिता की खेती में मदद करते थे। इस वजह से उनके पिता ने घर के पास के ही एक कॉलेज में उनका दाखिला करा दिया था। फिर जब उन्होंने बीएससी 100 प्रतिशत अंकों से पास किया तब जाकर उनके पिता ने पढ़ाई के प्रति अपना विचार बदला। के सिवन के अनुसार, बचपन में उनके पास पहनने के लिए जूते चप्पल नहीं थे। यहां तक कि कॉलेज तक भी उन्होंने धोती ही पहनी है।

बता दें कि सिवन 1982 में ISRO के PSLV प्रोजेक्ट का हिस्सा थे। सालों साल के संघर्ष और कठिन परिश्रम के बाद साल 2018 में के सिवन इसरो के चेयरमैन बनें। यह पद संभालने के पहले वह विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर रह चुके थे। इस क्षेत्र में उनके योगदान के चलते उन्हें रॉकेटमैन भी कहा जाता है। उनके लेख भी कई जर्नल्स में प्रकाशित किए जा चुके हैं और अपने काम के लिए उन्हें कई पुरुस्कारों से भी नवाज़ा गया है।


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