वर्तमान में व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ संगठन और कंपनी के स्तर पर भी कानूनी सलाहकारों की आवश्यकता में बढ़ोतरी हुई है। कानून के क्षेत्र में संभावनाएं बढ़ी हैं। वर्तमान में न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ना सामाजिक ही नहीं बल्कि धन और प्रसिद्धि दोनों नजरिए से बेहतर हो गया है।

भारतीय समाज में तेजी से कानूनी प्रक्रियाओं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आ रही है। देश में हुए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों से नए कानूनों के बनने में तेजी आई है जिसके चलते देश में कानून के अच्छे जानकारों की मांग बढ़ी है। भारतीय कानून में स्नातकोंकी मांग देश में ही नहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी है।

50 फीसद अंकों की आवश्यकता

पचास फीसद अंकों के साथ बारहवीं पास करने के बाद कानून की पढ़ाई शुरू की जा सकती है। देश के 14 राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय इसके लिए क्लैट (सामान्य विधि प्रवेश परीक्षा) नाम से प्रवेश परीक्षा का आयोजन करते हैं। इस परीक्षा में 50 फीसद ंअंकों के साथ बारहवीं पास विद्यार्थी आवेदन कर सकते हैं।

राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों के अलावा अन्य विश्वविद्यालयों या संस्थानों से बीए-एलएलबी, बीकॉम-एलएलबी, बीएससी-एलएलबी और बीबीए-एलएलबी की जा सकती है। अन्य विश्वविद्यालय और संस्थानों के पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए इनकी प्रवेश परीक्षा देनी होती है। ये पाठ्यक्रम पांच साल के होते हैं। जो विद्यार्थी स्नातक कर चुके हैं, वे एलएलबी पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकते हैं। इस पाठ्यक्रम की अवधि तीन साल होती है।

बार काउंसिल में पंजीकरण

कानून की पढ़ाई करने के बाद विद्यार्थी को भारतीय बार काउंसिल की ओर से आयोजित ‘अखिल भारतीय बार काउंसिल परीक्षा’ देनी होती है। इसमें उत्तीर्ण होने के बाद उम्मीदवार राज्य बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में अपने आपको पंजीकृत कराकर अधिवक्ता के रूप में अदालत में जिरह कर सकते हैं।

मिलने वाले पद

दीवानी न्यायाधीश : यदि अभ्यार्थी मजिस्ट्रेट या दीवानी न्यायाधीश बनकर भारतीय न्यायिक सेवा का हिस्सा बनना चाहते हैं तो उन्हें जिला अदालत की परीक्षा पास करके दीवानी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट बन सकते हैं।

अभियोजक :

अभियोजक बनने के लिए उम्मीदवार के पास कम से कम तीन साल का अनुभव होना चाहिए। इसके बाद उसे ‘असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर’ की परीक्षा देनी होगी जिसको पास करने के बाद उम्मीदवार अभियोजक बन जाएगा।

जिला जज :

यदि किसी व्यक्ति को अधिवक्ता के रूप में कम से कम सात साल का अनुभव है तो वह जिला जज की परीक्षा पास करके जिला जज बन सकता है। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जज : हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जज बनने के लिए उम्मीदवार के पास हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में कम से कम दस साल का अधिवक्ता के रूप में जिरह करने का अनुभव होना चाहिए।

भारत महान्यायवादी :
सुप्रीम कोर्ट में जज बनने की योग्यता रखने वाले अधिवक्ता को महान्यायवादी के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। भारत के महान्यायवादी केंद्र सरकार के मुख्य सलाहकार होते हैं।

इसके अलावा कानून की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए बैंकिंग और कोरपोरेट क्षेत्र में भी विधि अधिकारी के रूप में काम करने के अवसर उपलब्ध होते हैं। इतना ही नहीं, कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद यदि कोई उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से अपना कार्य करना चाहता है तो वह विधि फर्म बना सकते हैं। इसके अलावा किसी सरकार विभाग में पैनल अधिवक्ता बन सकते हैं।

कानून की पढ़ाई करने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में भी जाया जा सकता है। एलएलएम और राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा (नेट) में योग्यता हासिल करने के बाद उम्मीदवार किसी भी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हो सकते हैं।

वेतनमान

शीर्ष कानून विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल जाती है। अगर आप स्वतंत्र रूप से अपना कार्य करते हैं तो आपकी कमाई आपके अनुभव और योग्यता पर निर्भर करती है। देश में कई अधिवक्ता एक पेशी के ही लाखों रुपए लेते हैं।

पाठ्यक्रम कराने वाले अग्रणी संस्थान
विधि संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय
काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली
गुजरात राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय
सिंबायोसिस सोसायटीज लॉ कॉलेज, पुणे
राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालय, जोधपुर
नल्सर कानून विश्वविद्यालय, हैदराबाद

– विनोद यादव
(एलएलएम अधिवक्ता,
दिल्ली हाई कोर्ट)



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