इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, कैलकटा की फैकल्टी के लिए प्रस्तावित आचार संहिता कुछ इस प्रकार हैः

· इंस्टीट्यूट की आलोचना नहीं कर सकते

· सरकार की आलोचना नहीं कर सकते

· ऐसे धरना-प्रदर्शन में भाग नहीं ले सकते जो सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टता को नुकसान पहुंचाते हों

· अदालत का दरवाजा खटखटाने पर अंकुश

· प्रेस के आगे दुखड़ा रोने पर अंकुश

· राजनीति में हिस्सा लेना मना

· किसी गलती को ठीक कराने के लिए बनने वाली संयुक्त याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने पर रोक

इन बिंदुओं वाली आचार संहिता का ड्राफ्ट पिछली फरवरी में पूर्व निदेशक अंजू सेठ ने बोर्ड की ओर से सर्कुलेट कराया था। फैकल्टी के 60 शिक्षकों ने इसके विरुद्ध अपने हस्ताक्षरों से युक्त जवाब में कहा है कि आचार संहिता की तमाम बातें एकैडमिक इंस्टीट्यूशन के विरुद्ध है। एकैडमिक इंस्टीट्यूशन से तो विचारों की स्वतंत्रता और आलोचनात्मक चिंतन को बढ़ावा देने के लिए होते हैं। शिक्षकों ने यह भी इंगित किया है कि आचार संहिता के ज्यादातर बिंदु सेंट्रल सिविल सर्विसेज़ (कंडक्ट) रूल्स से लिए गए हैं।

शिक्षकों ने कहा है कि यह उनके संहिता संविधान संरक्षित अधिकारों का उल्लंघन करती है। यह उस विचार के भी खिलाफ हैं जो कहता है कि एकैडमिक इंस्टीट्यूशन सरकारी महकमों से भिन्न होते हैं।

उपर्युक्त बातों के अलावा संहिता शिक्षकों से यह भी अपेक्षा करती है कि यदि वे इंस्टीट्यूट से इतर कोई एकैडमिक पढ़ाई करना चाहें, तो वे किसी सक्षम अथारिटी से अनुमति अवश्य ले लें।

राजनीति में भाग लेने पर मनाही पर संहिता में आगे कहा गया है कि शिक्षकों से राजनैतिक तटस्थता अपेक्षित है। अतएव, किसी पार्टी या संगठन से नहीं जुड़ना है जो राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न रहता हो।

इसी तरह ऐसे जुलूसों और प्रदर्शनों में भाग नहीं लेना है जो भारत की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, मित्र देशों के साथ रिश्तों पर चोट पहुंचाते हों। ऐसे प्रदर्शनों के लिए भी ना-ना कहा गया है जो पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता के विरुद्ध हों या जो कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की परिधि में आते हों।

विडंबना यह कि आचार संहिता का ड्राफ्ट उस समय आया जिसके कुछ ही दिन पहले फैकल्टी सीधे सरकार के पास जाकर अपने निदेशक और बोर्ड की शिकायत की थी। निदेशक ने इसी के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था।

शिक्षकों ने अमेरिकी संस्थान एमआइटी में प्राप्त स्वंतत्रता का भी उल्लेख किया है और कहा है कि आलोचना पर रोक लगाना विश्वविख्यात संस्थानों की नीतियों से परे जाना है। शिक्षकों ने याद दिलाया है कि कई मामलों में अदालतों ने फैसलों में कहा है कि सिविल सर्विसेज़ का कोड ऑफ कंडक्ट एकैडमिक इंस्टीट्यूशन्स पर लागू नहीं होता। क्योंकि, शिक्षक सरकार का नौकर नहीं होता।

यहां कुछ अन्य आइआइएम की व्यवस्था का जिक्र आवश्यक है। आइआइएम-बैंगलोर संस्थान, सरकार और उनकी नीतियों की आलोचना की अनुमति देता है। आइआइएम-अहमदाबाद के जनरल रूल इस बिंदु पर खामोश हैं। बहरहाल, अहमदाबाद में राजनैतिक तटस्थता की अपेक्षा की जाती है।





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