लंबे समय तक शिक्षा प्रणाली कार्यालयों और कारखाने के श्रमिकों और क्लर्कों का उत्पादन करने के लिए औपनिवेशिक नींव पर टिकी हुई थी। यह परंपरागत शिक्षा प्रणाली अभिनव और रचनात्मक सोच की बजाय आदेश के लेन-देन पर आधारित रही है। इसलिए इसका पूरा ध्यान स्वतंत्र विचारकों और नव-प्रवर्तकों की उत्पादन के बजाय कारखानों में काम करने के लिए एक कार्यबल का उत्पादन करना था।
भारत में उत्कृष्ट प्रतिभाओं का भंडार होने के बावजूद परीक्षा आधारित हमारा शैक्षिक तंत्र ऐसे युवाओं को तैयार कर रहा है जो नवाचार समाधान और रचनात्मकता के मामले में काफी पीछे हैं। उदाहरण के लिए यदि बच्चे छोटी उम्र में मोबाइल लैपटॉप इत्यादि चलाना सीख लेते हैं तो इसका कारण यह है कि ये उपकरण केवल उन्हें आकर्षित करते हैं लेकिन मात्र उपयोग से वह नवाचारी नहीं बन सकते। सिर्फ तकनीक के उपयोग से नए विचार पैदा नहीं होते।
80 फीसद नौकरियां
स्टेम शिक्षा पद्धति में क्रमश: विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित पर खासतौर से जोर दिया जाता है। दरअसल, इस वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए कि भारत सर्वाधिक संख्या में वैज्ञानिक और इंजीनियर देने वाले देशों की सूची में शुमार किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में स्टेम शिक्षा की मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान स्थिति देखकर यह माना जा सकता है कि अगले एक दशक में पैदा होने वाली करीब अस्सी फीसद नौकरियां स्टेम शिक्षा पर ही आधारित होंगी।
भारत में इंजीनियरिंग तकनीक और उद्यमिता में एक अंतराल है जिसे भरने की क्षमता स्टेम शिक्षा में है। इसके अंतर्गत तार्किक ढंग से सोचने की कला समस्या के रचनात्मक निदान और नई पीढ़ी की नवाचार क्षमता पर जोर देती है। स्टेम शिक्षा को लेकर भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी कुछ बदलाव आ रहे हैं। अब केवल स्मार्ट कक्षा की बात नहीं हो रही बल्कि उससे आगे बढ़कर नई तकनीकों का प्रयोग शिक्षा में हो रहा है। सरकार की ओर से भी विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं को तकनीकी मदद मुहैया कराई जा रही है। लेकिन इसके साथ कुछ समस्याएं भी हैं, सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को बुनियादी सुविधाएं समझ समग्र पाठ्यक्रम और मार्गदर्शन उपलब्ध कराने की है।
कई देश अपना रहे हैं इस पद्धति को
हमें यह समझना होगा कि दुनिया के तमाम देश इस पद्धति को अपना रहे हैं और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बना रहे हैं। कई देशों ने स्टेम कार्यक्रम की संभावनाओं को साकार करने के लिए, अपनी शैक्षिक नीतियों में बदलाव करना शुरू कर दिया है। जापान पहले ही 2020 के लिए ‘नेशंस फ्रेमवर्क’ बना चुका है। कई यूरोपीय देशों में भी इसे अपनाया जा चुका है दुनिया के दूसरे सर्वाधिक आबादी और सांस्कृतिक विविधता वाले भारत में संभावनाओं की कमी नहीं है।
‘स्किल इंडिया’ अभियान के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने तीन हजार से अधिक शैक्षिक संस्थानों को स्टेम कार्यक्रम हेतु अधिकृत कर रखा है। माध्यमिक शिक्षा के बाद के विद्यार्थियों के लिए अन्य नौकरियों की तुलना में स्टेम क्षेत्र की नौकरियां अधिक सुलभ हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के कई क्षेत्रों में प्रगति के साथ, क्षेत्रों में तकनीकी प्रतिभा की मांग होने की संभावना है। हालांकि इन नौकरियों के लिए आवश्यक कौशल समय के साथ और अधिक उन्नत होते जाते हैं।
इसलिए नौकरी चाहने वालों के लिए यह जरूरी है कि वे इस क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहने के लिए खुद को लगातार अद्यतन और परिवर्धित करते रहें। स्टेम शिक्षा में पढ़ाई के बाद डेटा विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, स्वास्थ्य देखभाल, अभियांत्रिकी, कृषि, सांख्यिकी, वास्तुकला, कंप्यूटर तकनीशियन, मशीन निर्माण, विनिर्माण प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रीशियन क्षेत्र में सरलता से करिअर के रूप में अपनाया जा सकता है।
पांच विशेषताएं
स्टेम शिक्षा करिअर निर्माण में किस तरह की भूमिका निर्वाह करता उसे पांच विशेषताओं से जाना जा सकता है। प्रथम, स्टेम शिक्षा से संबंधित क्षेत्र कौशल अपार संभावनाओं से संबंधित है। द्वितीय, स्टेम करिअर में नौकरी सुरक्षा पर भरोसा किया जा सकता है। बढ़ती मांग के कारण, स्टेम क्षेत्रों में ढेर सारे विकल्प उपलब्ध रहते हैं।
तृतीय, गणित, विज्ञान और प्रोग्रामिंग सार्वभौमिक भाषाएं हैं जो दुनिया भर की टीमों को कठिन समस्याओं पर सहयोग करने में सक्षम बनाती है। चतुर्थ, स्टेम शिक्षा में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अवसर प्राप्त है क्योंकि सभी क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने से व समस्याओं को हल करने और नए ज्ञान का निर्माण करने पर ध्यान केंद्रित होता है और इसमें सभी के लिए करने को कुछ न कुछ होता है। पंचम, स्टेम कार्यक्रम को कम समय में अधिक आय देने वाला क्षेत्र से जुड़ा है।
– पवन विजय
(शिक्षक, डीआइआरडी, आइपी विश्वविद्यालय)
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