संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (बी) के अनुसार नागरिकों को शांतिपूर्वक और बिना हथियारों के जमा होने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट पिछले कुछ सालों में ऐसे मामलों पर लगातार कहता रहा है कि शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन करना, किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है। कार्यपालिका या न्यायपालिका उनसे यह अधिकार नहीं छीन सकती।
मौलिक अधिकारों के तहत इसका इस्तेमाल करने के साथ ये भी जरूरी है कि कानूनों का उल्लंघन न हो। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अ) में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार दिया गया है। वहीं, इसी अनुच्छेद के तहत 19 (1) (इ) में नागरिकों को अपनी मांगों के समर्थन में शांतिपूर्ण विरोध के लिए एक जगह इकट्ठा होने का भी अधिकार है।
विरोध प्रदर्शन में किसी भी तरह की हिंसा नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही प्रदर्शन के लिए पहले से अनुमति जरूरी होती है। इसको लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग व्यवस्था बनाई गई है। हालांकि कुछ नियम कायदों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे धरना प्रदर्शन से पहले पुलिस या प्रशासन इजाजत और अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना जरूरी है।
इलाके की शांति को खतरा, तनाव या हिंसा की संभावना पर पुलिस या प्रशासन मना कर सकता है। पुलिस को धरना प्रदर्शन के उद्देश्य, जगह, तारीख, समय-सीमा, लोगों की संख्या आदि बताना आवश्यक है। अनुमति लेने वाले को नाम, पता आदि पहचान के जरूरी दस्तावेज, फोटो और मोबाइल नंबर देना जरूरी है।
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(3) के तहत इस पर विशेष परिस्थितियों में कई तरह की पाबंदिया लगाने का भी प्रावधान है। मसलन, राज्य या राष्ट्र की सुरक्षा और देश की एकता-अखंडता को खतरा हो। आम जनजीवन प्रभावित होने का खतरा हो। अदालत की अवमानना होने की स्थिति में और पड़ोसी देशों के साथ संबंध प्रभावित होने की स्थिति में विरोध प्रदर्शनों पर पाबंदियां लगाई जा सकती है।
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