बिहार में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले सियासत अपने चरम पर है। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के मुद्दे पर लालू यादव और तेजस्वी यादव ने तो लगता है कि विपक्षी खेमे के सभी सियासी दलों को पछाड़ दिया है। पटना में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत अन्य मुस्लिम संगठनों के धरना-प्रदर्शन में लालू और तेजस्वी यादव साथ में पहुंचे और वक्फ बिल का विरोध कर रहे नेताओं के साथ मंच भी साझा किया। आरजेडी नेताओं के इस कदम ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। तेजस्वी यादव ने यहां पर कहा कि लोकतंत्र और भाइचारे को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। एक रहिये इंशाअल्लाह हमारी जीत होगी।

बिहार में होती इफ्तार पार्टी

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिमों को साधने में कोई भी सियासी दल कमी नहीं छोड़ रहा है। चाहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हो या आरजेडी के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सभी इफ्तार पार्टी का आयोजन कर रहे हैं। चिराग पासवान ने भी इफ्तार पार्टी दी थी। रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में रोजा इफ्तार पार्टी दी थी, जिसमें बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान सहित कई लोगों ने शिरकत की, लेकिन मुस्लिम तंजीमों के बॉयकाट के चलते महफिल सूनी रही। वहीं चिराग पासवान की तरफ से दी गई इफ्तार पार्टी में खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत बीजेपी के बड़े नेता पहुंचे। दूसरी तरफ अब बात अगर लालू प्रसाद यादव की इफ्तार पार्टी की करें तो इसमें कांग्रेस और वीआईपी पार्टी के कोई भी नेता शामिल नहीं हुए।

बिहार की मुस्लिम राजनीति

बिहार की मुस्लिम पॉलिटिक्स की बात की जाए तो यहां पर करीब 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है। यह किसी भी पार्टी का खेल बिगाड़ने और बनाने का पूरा दमखम रखते हैं। देश की आजादी के बाद से मुस्लिम कांग्रेस पार्टी का परंपरागत वोटर रहा है। बिहार में साल 1970 तक मुसलमानों ने कांग्रेस पार्टी का साथ दिया। बांग्लादेश के आजाद होने के बाद साल 1971 में बिहार में मुस्लिमों की पॉलिटिक्स में बदलाव आना शुरू हुआ। उस वक्त उर्दू भाषी प्रवासियों की हत्याएं हुई।

जय प्रकाश नारायण के आंदोलन ने भी काफी असर डाला था। इसकी वजह से साल 1977 में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में जनता सरकार का गठन हुआ। ऐसा पहली बार हुआ था जब मुसलमानों ने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ वोट किया था। इतना ही नहीं मुस्लिम ने कांग्रेस पार्टी को साल 1980 में फिर से वापसी कराई। लेकिन 90 के दशक में फिर से कुछ बदलाव देखने को मिला। लालू यादव के साथ मुस्लिमों के जुड़ने की एक बड़ी वजह 1989 में हुए भागलपुर का सांप्रदायिक दंगा रहा। मुस्लिमों का वोट बैंक एक बार फिर से कांग्रेस से छिटक गया।

बिहार में कितनी सीटों पर मुस्लिमों का प्रभाव

बिहार में मुस्लिम वोट बैंक की ताकत को इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि बिहार की 243 सीटों में से कुल 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। यानी 47 सीटों पर मुस्लिमों की तादाद 50% है। वहीं 11 सीटों पर मुस्लिम वोट 40% के आसपास है। ऐसे में अगर मुस्लिम वोट बैंक JDU के हाथ खिसकता है, तो यह नीतीश के लिए चिंता पैदा कर सकता है।

आरजेडी को कितना मिलता है मुस्लिम वोट

सीडीएस के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछली बार के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर्स ने महागठबंधन को खुलकर वोट किया था। उन्हें करीब मुस्लिमों का 77 फीसदी वोट हासिल हुआ था। इसके अलावा मुस्लिमों का करीब 11 फीसदी वोट ओवैसी की पार्टी खींचकर ले गई। 12 फीसदी मुस्लिमों का वोट जेडीयू, भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के खाते में गया।

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बीजेपी को भी चाहिए मुस्लिम वोट

केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए एक और प्लान बनाया है। इसे सौगात-ए-मोदी नाम दिया गया है और दिल्ली से इस योजना का मंगलवार को शुभारंभ कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी ने सौगात-ए-मोदी की शुरुआत दिल्ली से की है, मगर इसकी सबसे ज्यादा चर्चा साल के आखिर में चुनाव होने वाले राज्य बिहार में है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि मुस्लिम वोटर्स को लुभाने के लिए बीजेपी ने ये दांव चला है। हालांकि, विपक्ष के नेता ये भी कहते हैं कि ऐसी सौगातों से बीजेपी को बिहार में कोई फायदा नहीं मिलने वाला है। लेकिन फिर भी बीजेपी का मुस्लिमों के बीच जाना बड़ी बात है, इस प्लान के बारे में विस्तार से जानने के लिए जनसत्ता की इस खबर का रुख करें


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