बुधवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा एक रिपोर्ट जारी किया गया जिसमें कोरोना महामारी के दौरान उत्पन्न चुनौतियों के प्रति सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बारे में बताया गया है। इस रिपोर्ट को करीब 22 राज्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए आकंड़ों के आधार पर तैयार किया गया है।

कोरोना महामारी के बाद अधिकांश स्कूलों में डिजिटल माध्यम के द्वारा बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। लेकिन एक बड़ी आबादी के पास ठीक ढंग से डिजिटल एक्सेस नहीं होने के कारण बच्चों से उनके पढ़ने के अधिकार को छीना जा रहा है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश के सात राज्यों के 40 फीसदी बच्चों के पास डिजिटल माध्यम उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण उनकी शिक्षा प्रभावित हो रही है। इन राज्यों में मध्यप्रदेश का नाम सबसे आगे है और बिहार दूसरे नंबर पर है।

बुधवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा एक रिपोर्ट जारी किया गया जिसमें कोरोना महामारी के दौरान उत्पन्न चुनौतियों के प्रति सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बारे में बताया गया है। इस रिपोर्ट को करीब 22 राज्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए आकंड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड के करीब 40% से लेकर 70% स्कूल जाने वाले बच्चों के पास डिजिटल उपकरण उपलब्ध नहीं है। जिससे उनकी शिक्षा काफी हद तक प्रभावित हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में करीब 70%, बिहार में 58.09%, आंध्र प्रदेश में 57%, असम में 44.24%, झारखंड में 43.42%, उत्तराखंड में 41.17% और गुजरात के 40% स्कूली बच्चों के पास डिजिटल माध्यमों की उपलब्धता नहीं है। हालांकि केरल और तमिलनाडु समेत कई राज्यों में यह स्थिति ठीक है। रिपोर्ट के अनुसार केरल के सिर्फ 1.63%, तमिलनाडु के 14.51% और नई दिल्ली के सिर्फ 4% स्कूली बच्चों के पास मोबाइल, लैपटॉप और इंटरनेट जैसे जरूरी डिजिटल माध्यम उपलब्ध नहीं हैं।

रिपोर्ट में साफ़ साफ़ दिखाया गया है कि किस तरह से डिजिटल विभाजन ने कुछ राज्यों के स्कूली बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित किया है जबकि बच्चों को स्मार्टफोन और टेलीविजन को उपलब्ध करवाकर इस समस्या से काफी हद तक पार पाया जा सकता है। हालांकि उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के द्वारा इस संबंध में आकंड़े नहीं उपलब्ध करवाने के कारण डिजिटल विभाजन की तस्वीर ठीक ढंग से सामने नहीं आ पाई है। वहीं राजस्थान जैसे राज्य ने यह भी अजीबोगरीब दावा किया कि उनके यहां कोई ऐसा बच्चा नहीं है जिसके पास डिजिटल माध्यम उपलब्ध ना हो।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कई गैर सरकारी संस्थाओं ने डिजिटल असमानता को कम करने के प्रयास भी किए। हालांकि इसमें राज्य सरकारों का सहयोग काफी न्यूनतम रहा। उदहारण के तौर पर रिपोर्ट में बताया गया है कि 2.46 करोड़ छात्रों वाले राज्य बिहार में करीब 1.43 करोड़ बच्चों के पास डिजिटल उपकरण उपलब्ध नहीं थे। जिसके बाद यूनिसेफ की सहायता से महादलित समुदायों पर विशेष ध्यान देने के लिए सात जिलों में टीवी, वीडियो, गणित के खेल और खिलौनों से लैस मोबाइल वैन को तैनात किया गया। हालांकि राज्य सरकार ने इसमें न्यूनतम सहयोग करते हुए सिर्फ 42 छात्रों को मोबाइल और 250 बच्चों को टैबलेट उपलब्ध करवाए।


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