
किसी भी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि आगे ऐसे इंतजाम किए जाएं ताकि वैसी घटना दोबारा न हो। मगर विडंबना है कि लगभग एक ही प्रकृति के हादसों का सिलसिला बना रहता है। सरकार की ओर से आगे सब ठीक करने के आश्वासन से ज्यादा कुछ भी ठोस सामने नहीं आता। पिछले कुछ वर्षों से देश भर में रेल हादसों की जैसी खबरें आ रही हैं, उससे यही लगता है कि रेल सुरक्षा को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है और कभी भी किसी दुर्घटना की खबर आ सकती है। सवाल है कि अगर देश के अलग-अलग हिस्सों में आए दिन रेलगाड़ियां हादसों का शिकार हो रही हैं, तो उसके लिए किसकी जवाबदेही बनती है और उसमें सुधार के लिए ठोस उपाय करने की जिम्मेदारी किसके कंधे पर है।
गौरतलब है कि ओड़ीशा के कटक जिले के निर्गुड़ी में रविवार को बंगलुरु-कामाख्या एसी एक्सप्रेस के ग्यारह डिब्बे पटरी से उतर गए। इस हादसे में एक व्यक्ति की मौत हो गई और अन्य कई लोग घायल हो गए। हो सकता है कि कटक में हुई दुर्घटना में जानमाल का ज्यादा नुकसान न होना राहत की बात मानी जाए, लेकिन ग्यारह डिब्बों का पटरी से उतरना एक गंभीर घटना ही है। सच यह है कि एक छोटी चूक या लापरवाही की वजह से बहुत सारे लोगों की जान पर बन आती है और इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें ट्रेन हादसे में बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई।
अंतरराष्ट्रीय स्तर की सेवा मुहैया कराने वाला है रेलवे विभाग
ऐसे हर हादसे के बाद सरकार की ओर से जांच और कार्रवाई करने की बात कही जाती है, लेकिन सवाल है कि चलती ट्रेन के पटरियों से उतरने और उससे उपजे जोखिम से यात्रियों को कब मुक्ति मिलेगी। लोग कब इस आशंका से पूरी तरह मुक्त होकर किसी ट्रेन से सफर करेंगे कि वह हादसे का शिकार न हो और वे सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच जाएं?
हवाई टिकट को लेकर पक्ष-विपक्ष के बीच हंगामा, त्योहारों में आसमान छू लेता है किराया
अक्सर ऐसी खबरें सुर्खियों में होती हैं, जिनमें बताया जाता है कि रेलवे विभाग जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय स्तर की सेवा मुहैया कराने वाला है। इस तरह के सरकारी दावों के बरक्स हकीकत यह है कि आए दिन किसी ट्रेन के पटरी से उतर जाने की खबर आती है, तो कभी किसी अन्य हादसे की। अगर दुर्घटना को लेकर लोगों के भीतर किसी तरह का केवल डर भी बैठता है, तो इसका कारण लगातार होने वाले रेल हादसे ही होते हैं।
तमाम सुविधाओं से लैस आधुनिक ट्रेनें
जितने दावे नई और तमाम सुविधाओं से लैस आधुनिक ट्रेनें चलाने के किए जाते हैं, उतना ही ध्यान अगर ट्रेनों के संचालन, बुनियादी ढांचे के विकास और उसके मजबूत करने पर दिए जाएं, तो शायद हादसों को कुछ लगाम दिया जा पाता। विचित्र है कि ट्रेनों की रफ्तार और उनके बोझ में तो लगातार इजाफा हो रहा है, मगर उसी मुताबिक पटरियों की गुणवत्ता और व्यवस्थागत पहलू को भी बेहतर करना जरूरी नहीं समझा जाता।
लोकतंत्र में बोलने की स्वतंत्रता, सर्वोच्च न्यायालय ने साफ शब्दों में व्यक्त की अपनी राय
सवाल है कि सिर्फ इस मामले में बरती जाने वाली उपेक्षा की वजह से अगर कोई रेलगाड़ी पटरी से उतर जाती है और हादसा हो जाता है, तो क्या सिर्फ जांच और कार्रवाई के आश्वासन के जरिए इस समस्या से पार पाया जा सकता है? आधुनिक शक्ल और महंगे किराए वाली ट्रेनें चलाने के बीच आए दिन छोटे-बड़े हादसे सामने आ रहे हैं और दूसरी ओर, भारतीय रेल महकमे में बड़ी तादाद में रिक्तियां पड़ी हुई हैं। सवाल है कि अगर सरकार ट्रेन हादसों पर लगाम लगाने का भरोसा देती भी है, तो लचर बुनियादी ढांचे और पदों के खाली रहने की स्थिति में उसका आधार क्या होगा?
Source link