हर साल बोर्ड परीक्षाएं नजदीक आते ही बच्चों और अभिभावकों में तनाव कुछ बढ़ जाता है। हालांकि परीक्षा का तनाव कम करने के मकसद से स्कूल और शिक्षा बोर्ड लगातार प्रयास करते रहे हैं, मगर स्कूली शिक्षा का जुड़ाव चूंकि आगे उच्च शिक्षा के लिए दाखिले, विभिन्न नौकरियों के लिए आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं से भी होता है, इसलिए बोर्ड परीक्षाओं का स्वरूप जानबूझ कर थोड़ा सख्त रखना ही पड़ता है। यह स्कूलों के लिए भी एक पैमाना बनता है। मगर इन सबके बावजूद अगर विद्यार्थी और अभिभावक थोड़ा सतर्क और जागरूक रहें, तो इन परीक्षाओं का तनाव पास फटकेगा ही नहीं। ऐसे वक्त में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, इसी पर विशेष।

कोरोना काल से प्रभावित रहे स्कूल, एक बार फिर सामान्य दिनों की तरह अपनी गतिविधियां शुरू कर चुके हैं। एक तरफ जहां छोटी कक्षाओं के लिए नया सत्र शुरू हो रहा है, तो केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने परीक्षा को लेकर कोरोना काल में कई सुधार किए। 2020-21 में जब स्कूल अचानक बंद हो गए, तो बोर्ड परीक्षा के लिए तीस प्रतिशत कम पाठ्यक्रम रखा गया और मूल्यांकन के लिए एक उदार प्रक्रिया अपनाई गई थी।

ब्रिटेन, फ्रांस, आयरलैंड ने भी उन दिनों स्कूलों की परीक्षाएं निरस्त कर दी और इटली ने अपने छात्रों के लिए मौखिक परीक्षा कराने का निर्णय किया था। फ्रांस में स्कूली परीक्षा में सुधार पर कार्य हो रहा है और भारत में अकादमिक सत्र 2021-2022 में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में आधे-आधे पाठ्यक्रम पर आधारित, दो खंडों में बोर्ड परीक्षा का प्रावधान किया गया है। परीक्षा के पुराने स्वरूप को बदल कर अब बहुविकल्पीय और केस आधारित परीक्षा का निर्णय लिया गया है।

भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों में बोर्ड परीक्षा के प्राप्तांक, उच्च शिक्षा और प्रगति का रास्ता खोलते हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था की यह विडंबना है कि स्कूल कक्षा के भीतर जिन मूल्यों की बात होती है, वह व्यवहार समाज की गतिविधियों में नहीं दिखता। परीक्षा में नंबरों की दौड़ से यह पता चलता है कि हम अपने निजी जीवन में प्रतियोगिता को कितना महत्त्व देते हैं!

इस संदर्भ में जापान की कक्षाओं से कुछ सीखा जा सकता है। वहां अगर कक्षा में कोई छात्र कोई अवधारणा नहीं सीख पाता, तो कक्षाध्यापक सहित पूरी कक्षा के छात्रों की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वे उस छात्र की मदद करें। जापान के स्कूलों में सामूहिकता, समन्यवय और संतोष सिखाया जाता है, जो वहां के समाज में आमतौर पर प्रचलन में है। उनका दर्शन- ‘लेस इस मोर’ (जो है वह पर्याप्त है), जीवन में नंबरों की दौड़ से बच्चों को बचा लेता है।

अंकों की मैराथन :

हर साल कई लाख छात्र बारहवीं की परीक्षा पास करते हैं और उनमें से एक बड़ी संख्या उन छात्रों की होती है, जो केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के इच्छुक होते हैं। चूंकि पिछले वर्ष तक दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में प्रवेश का आधार बारहवीं की परीक्षा में प्राप्त अंक होते थे, तो मध्यवर्गीय छात्रों के ऊपर अधिक नंबर लाने का दबाव रहता था। परीक्षा में अंक लाने का दबाव छात्रों-अभिभावकों-स्कूलों के ऊपर इतना अधिक रहने लगा कि छात्रों के बीच तनाव, अनिद्रा और आत्महत्या की घटनाएं भी होने लगीं। स्कूलों के बीच भी अव्वल रहने को होड़ लग गई। इस प्रक्रिया में छात्रों को क्या सीखना चाहिए, यह पीछे छूट गया और कैसे अधिक नंबर लाए जाएं, यह बात स्कूल-अध्यापक-विद्यार्थी के लिए महत्त्वपूर्ण हो गई।

अब केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने परीक्षा दो खंडों में कराना सुनिश्चित किया है, ताकि छात्रों के ऊपर दबाव कम हो सके। पहले हुई परीक्षा और इस माह से शुरू हो रही परीक्षा के संयुक्त अंक से, बारहवीं का प्राप्तांक तय होगा। अकादमिक वर्ष के अंत में बोर्ड परीक्षा का दूसरा हिस्सा केवल पचास प्रतिशत पाठ्यक्रम पर केंद्रित रहेगा। बारहवीं की परीक्षा की तैयारी करने वाले एक छात्र की मां इस बात से चिंतित है कि इसी वर्ष केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने परीक्षा का स्वरूप बदला और अब विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए भी परीक्षा होनी है!

इस वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय सहित अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अब प्रवेश के लिए एक संयुक्त परीक्षा होनी है, जिसमें छात्रों के सामान्य अध्ययन, भाषा के साथ सामान्य बोध का मूल्यांकन किया जाएगा। पिछले वर्षों में कुछ राज्यों पर अपने छात्रों को अधिक अंक देने का आरोप लगा, क्योंकि अंकों के आधार पर अच्छे कालेजों में कुछ ही राज्यों के छात्रों से सीट भर जाती थी। राज्यों के बोर्ड, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के बीच भी छात्रों के मूल्यांकन की एकरूपता न होने का सवाल उठता रहा है। अब उम्मीद है कि विश्वविद्यालयी प्रवेश परीक्षा में सभी छात्रों को प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में प्रवेश का एक समान अवसर मिलेगा।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में होने वाली प्रवेश परीक्षा के चलते आने वाले वर्षों में यह भी संभव है कि स्कूलों में पढ़ाई के केंद्र में प्रवेश परीक्षा की सफलता आ जाए। इंजीनियरिंग-मेडिकल को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि विश्वविद्यालयों में प्रवेश परीक्षा के लिए अलग से आनलाइन-आफलाइन कोचिंग की बड़े पैमाने पर शुरुआत हो जाएगी और जिनके पास अधिक संसाधन होंगे, उनके लिए उच्च शिक्षा के दरवाजे अपेक्षाकृत आसानी से खुल जाएंगे।




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