डॉ. नित्यानंद अगस्ती

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में पिछले दिनों कुछ ऐतिहासिक हुआ, जो हर तरफ चर्चा का विषय बना। पहली बार विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों को प्रमोट कर प्रोफेसर बनाया गया। यह व्यवस्था पहले विवि के विभागों तक ही सीमित थी। तमाम कॉलेजों में कई ऐसे शिक्षक थे, जो लंबे वक्त से एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर अपनी सेवा दे रहे थे और उनका प्रमोशन जुलाई 2018 से ही लंबित था।

इस प्रमोशन को सिर्फ कुछ शिक्षकों की पदोन्नति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके व्यापक प्रभाव हैं। सबसे महत्वपूर्ण तो यह कि इस पदोन्नति ने पूरे विश्वविद्यालय में गुणात्मक शैक्षणिक प्रगति पर ध्यान देने योग्य प्रभाव डाला है। आपको बता दें कि अभी तक डीयू से संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों को ज्यादा से ज्यादा सहायक प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर के स्तर तक पदोन्नत किया जाता था। इससे उनका करियर आगे बढ़ नहीं पाता था। लेकिन इस बार हुए पदोन्नति खासकर युवा सहायक प्रोफेसरों के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

रिसर्च पब्लिकेशंस की गुणवत्ता सुधरेगी: डीयू के इस अभूतपूर्व कदम से उन तमाम युवा शिक्षकों को प्रेरणा मिल रही है, जो यूजीसी के तमाम नियमों को पूरा कर प्रोफेसर बनने की चाहत रखते हैं। तमाम शिक्षकों ने तो अपने शोध आउटपुट को बढ़ाने का काम भी शुरू कर दिया है। जल्द ही रिसर्च पब्लिकेशंस के रूप में इसका नतीजा भी देखने को मिलेगा। न सिर्फ पब्लिकेशंस की संख्या बढ़ेगी, बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार होगा। कल्पना कीजिए कि अगर सभी असिस्टेंट प्रोफेसर, प्रमोशन के लिए जरूर प्रकाशन की संख्या को पूरा करते हैं तो पूरे विश्वविद्यालय के प्रकाशनों की संख्या में कितना उछाल आयेगा।

इसको इस तरीके से समझें कि डीयू से संबद्ध हर कॉलेज में तकरीबन 50 असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। यदि सभी जरूरी रिसर्च पब्लिकेशंस पर काम करें तो करीबन 35000 पब्लिकेशन तैयार हो जाएगा, जो देश में शोध प्रकाशनों की संख्या में बेहद महत्वपूर्ण योगदान होगा। हालांकि पहले प्रकाशन की गुणवत्ता एक प्रमुख चिंता का विषय रही है। लेकिन स्कोपस इंडेक्सेड ( Scopus Indexed) जैसी गुणवत्तापरक शोध पत्रिकाओं में प्रकाशन की अनिवार्यता से इसका स्तर सुधरा है। शिक्षक भी सतर्क और सजग हुए हैं। कुल मिलाकर नई व्यवस्था के बाद तमाम युवा शिक्षक घंटों किताबों में सिर खपाने, शोध और शोध की गुणवत्ता पर ध्यान देने को तैयार दिख रहे हैं। क्योंकि उन्हें पदोन्नति की संभावना दिखाई दे रही है, जो पहले नहीं थी।

पीएचडी के नामांकन में भी होगा इजाफा:
 इन सबके साथ-साथ पीएचडी में दाखिले की संख्या में भी भारी उछाल आएगा, क्योंकि अब ज्यादा शिक्षक शोध कराने (रिसर्च सुपरवाइजर) को तैयार होंगे, जो प्रमोशन के लिए अहम है। इसके अलावा शिक्षक शोध के विषय, उसकी गुणवत्ता और प्रकाशन जैसी बुनियादी चीजों को गंभीरता से लेंगे और ध्यान देंगे।

बता दें कि प्रमोशन की प्रक्रिया का लाभ सिर्फ एसोसिएट प्रोफेसरों को ही नहीं मिला, बल्कि अलग-अलग स्तर पर सैकड़ों शिक्षक लाभान्वित हुए। मसलन, तमाम असिस्टेंट प्रोफेसर प्रमोट होकर एसोसिएट बने। कई शिक्षकों को पदोन्नति के अलग-अलग चरण का लाभ मिला, जो पिछले दस-बारह साल से लंबित था। दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थान में सालभर के भीतर ही प्रमोशन से जुड़े मामलों को आगे बढ़ाना एक बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

यह काम विवि के डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो. बलराम पाणि के नेतृत्व में संभव हो पाया, जो पहले दिन से ही इस कार्य को लेकर दृढ़ संकल्पित थे। प्रोफेसर पाणि कहते हैं कि “पदोन्नति का काम सबकी सहायता और समन्वय के कारण संभव हो पाया। यह शिक्षक का अधिकार भी है। अगर इसे समय से पूरा कर दिया जाए तो बेहतर शैक्षणिक वातावरण बनेगा और नेतृत्व-कार्य करने की क्षमता भी बढ़ेगी। यह काम लंबे समय से नहीं हुआ था, इसलिए मैंने मिशन मोड में इसे पूरा करने का फैसला लिया। केवल पदोन्नति ही नहीं बल्कि सेवानिवृत्त शिक्षकों के पेंशन आदि से जुड़े मुद्दे भी पेंडिंग थे। विश्वविद्यालय ने इसे भी हल कर लिया है, और फिलहाल ऐसा कोई नहीं है, जिसकी पेंशन फाइल लंबित हो।”

नई नियुक्तियों की प्रक्रिया में आएगी तेजी: चूंकि, अब पदोन्नति की प्रक्रिया लगभग पूरी होने को है, ऐसे में विश्वविद्यालय में नियुक्तियों की प्रक्रिया में भी तेजी आने की संभावना है, जो सालों से लंबित है। खासकर एडहॉक पर पढ़ा रहे हजारों शिक्षकों को भी उम्मीद जगी है। बता दें कि डीयू से संबद्ध तमाम ऐसे कॉलेज हैं, जहां बीते एक दशक से भी ज्यादा वक्त से कोई भी स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है। जिसके चलते हजारों योग्य-कुशल शिक्षकों के करियर पर एक तरीके से ब्रेक लग गया है। प्रो. बलराम पाणि कहते हैं कि किसी भी असंतुष्ट व्यक्ति से आप सौ फीसदी योगदान की अपेक्षा नहीं रख सकते हैं।

वे कहते हैं कि विवि में नए कुलपति की नियुक्ति के साथ ही प्रमोशन की तरह नई नियुक्तियों की प्रक्रिया भी गति पकड़ेगी। शिक्षा मंत्रालय द्वारा देश के सभी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति को पूरा करने के लिए दी गई समय-सीमा के अंदर यहां भी नियुक्तियों की प्रक्रिया पूरी करने की दिशा में काम चल रहा है। इससे निश्चित रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय में पठन-पाठन का माहौल और बेहतर होगा। खासकर, ऐसे वक्त में जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू हो गई है, तब विवि ऐसे महत्वपूर्ण कार्य को नजरअंदाज करने का जोखिम कतई नहीं उठा सकता है।

(डॉ. नित्यानंद अगस्ती, दिल्ली विश्वविद्यालय के दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज में केमिस्ट्री के शिक्षक हैं)

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