जब हम किसी भी काम को चुनौती बना लेते हैं तो वह आसानी से पूरा हो जाता है। वह हमारे ऊपर बोझ नहीं बनता है। इस प्रक्रिया से हमें मनोवैज्ञानिक दबाव भी महसूस नहीं होता है। इसलिए सहज रूप से और कम तनाव के साथ कार्य सम्पन्न करना है तो यह जरूरी है कि हम उस काम को चुनौती बना लें। यदि हम अपने काम को चुनौती नहीं बनाते हैं तो वह हमारे ऊपर हावी होने की कोशिश करता है। जब कोई भी काम हमारे ऊपर हावी हो जाता है तो हमें घबराहट महसूस होने लगती है और हम काम से दूर भागने लगते हैं।

जब भी हमें काम से घबराहट महसूस हो तो यह समझ लेना चाहिए कि हम दिल से काम के साथ जुड़ नहीं पाए हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। इसलिए सबसे पहले इस बात का विश्लेषण करना होगा कि हम काम के साथ जुड़ क्यों नहीं पा रहे हैं? क्योंकि अगर यह विश्लेषण नहीं होगा तो हमें यह पता ही नहीं चलेगा कि समस्या कहां है। कई बार समस्या हमारे अंदर ही होती है और हम उसे बाहर ढूंढ़ते रहते हैं। अगर हम काम के प्रति अपना नजरिया बदल लेते हैं तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो जाता है।

कहा जाता है कि जब हमारा मन एकाग्र नहीं होता है तो भी काम में दिल नहीं लगता है। मन को चंचल कहा गया है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो हम सभी का मानवीय स्वभाव एक जैसा ही होता है। इसलिए हमारी कमजोरियां भी एक जैसी ही होती हैं। अत: एकाग्रता में कमी की आड़ लेकर काम के प्रति लापरवाही नहीं बरती जा सकती। जब किसी भी काम में हमारा दिल लगता है तो एकाग्रता स्वयं स्थापित हो जाती है।

सवाल यह है कि काम में दिल कैसे लगे? कर्म को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसका अर्थ यह है कि जिंदगी में सबसे ज्यादा महत्व कर्म को ही दिया गया है। दरअसल हम कर्म को महत्व तो देते हैं लेकिन इतना महत्व नहीं देते कि उसे पूजा बना लें। यहीं से वास्तविक समस्या शुरू होती है। हम इस भ्रम में रहते हैं कि हम तो कर्म को महत्व दे रहे हैं लेकिन हम कर्म को सबसे ज्यादा महत्व नहीं देते हैं। हम कर्म को महत्व देने के साथ-साथ एक ही समय में अन्य चीजों को भी महत्व देने लगते हैं।

इस प्रक्रिया के कारण धीरे-धीरे हमारी रुचि कर्म में कम होती चली जाती है और अन्य चीजों में बढ़ने लगती है। एक समय ऐसा आता है जब अन्य चीजों में हमारी रुचि इतनी बढ़ जाती है कि हम कर्म को पीछे धकेल देते हैं। ऐसे माहौल में काम में दिल लगने का सवाल ही पैदा नहीं होता। जो लोग कर्म को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं, वे लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले जाते हैं।

अगर हमारा जीवन संघर्ष के साथ भी आगे बढ़ रहा है तो यह भी एक तरह की सफलता ही है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीवन रुकना नहीं चाहिए। हमें अपेक्षित सफलता मिले या न मिले लेकिन इतना तय है कि जो लोग कर्म को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं, उनके जीवन में निराशा का कोई स्थान नहीं होता है। जीवन में निराशा का न होना भी एक बड़ी उपलब्धि है। काम में मन न लगने का एक बड़ा कारण अपने काम को सम्मान न देना भी है।

इसलिए हर हाल में यह कोशिश करनी होगी कि हम जो काम कर रहे हैं, उसे सम्मान जरूर दें। अगर काम के प्रति सम्मान होगा तो उसे जल्दी निपटाने का भाव भी जाग्रत होगा। काम के प्रति सम्मान होगा तो कर्म स्वयं पूजा बन जाएगा। कर्म के पूजा बनते ही काम के प्रति हमारा विश्वास तो दृढ़ होगा ही, काम में हमारा दिल भी लगने लगेगा। जब इतनी बातें हमारे हित में हों तो फिर हम काम को बोझ न मानते हुए उसे चुनौती बनाएं।




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