भविष्य के लिए स्किल्ड प्रोफेशनल तैयार करने के लिए, अब नतीजों पर आधारित शिक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है। अस्थिरता, अनिश्चितता, जटिलता और अस्पष्टता (VUCA) वाले इस दौर में लगातार इनोवेशन हो रहे हैं और टेक्नोलॉजी तेजी से बेहतर हो रही है। इसका समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति और कारोबार पर असर पड़ता है। आईएमएस गाजियाबाद की डॉक्टर उर्वशी मक्कड़ के मुताबिक, “कई आधुनिक उद्योगों और उनमें स्किल्स से जुड़ी जरूरतों में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। चौथी औद्योगिक क्रांति के दौर में, जानकारी पर केंद्रित ऐसी अर्थव्यवस्था और नए दौर के स्टार्टअप बढ़ रहे हैं जिनमें अस्थायी नौकरियां बढ़ी हैं। आने वाले समय में, नौकरियां कितनी और किस तरह की होंगी, इसे लेकर बड़ी उथल-पुथल जारी है और इस मामले में कारोबारी परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।”

“चौथी औद्योगिक क्रांति के दौर में कारोबारों में कई अड़चने हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2000 में फ़ॉर्च्यून-500 में शामिल रही कंपनियों में से लगभग 54% विलुप्त हो चुकी हैं। वहीं कई ऐसी भी हो सकती हैं जो अभी अस्तित्व में नहीं हैं, लेकिन 2035 तक इस सूची में शामिल हो सकती हैं। तकनीकी, आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफ़िक) बदलावों से जूझ रहा कारोबार का मौजूदा इकोसिस्टम शिक्षा के पारंपरिक ढांचे में बदलाव की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभा रहा है। इससे शिक्षा तंत्र पर दृष्टिकोण में सुधार करने, अनुकूलन बनाने और बदलावों के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है। ऐसा न होने पर, इसके पूरी तरह चलन से बाहर हो जाने खतरा मंडरा रहा है।”

डॉक्टर मक्कड़ कहती हैं, “पारंपरिक शिक्षा तंत्र की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसका सारा ध्यान छात्रों को कॉर्पोरेट वर्ल्ड की जरूरतें पूरी करने वाली महत्वपूर्ण स्किल्स देने के बजाय, सिर्फ पाठ्यक्रम पूरा करने और अच्छे अंक हासिल करने पर केंद्रित हो गया है। उद्योगों की ज़रूरतों और स्कूलों में पढ़ाए जा रहे पाठ्यक्रम के बीच की इसी खाई की वजह से, देश में पहले से व्याप्त बेरोजगारी की समस्या और बढ़ रही है। तेजी से बदलते दौर में, अस्तित्व को बनाए रखने के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा में आगे रहने के लिए, बिज़नेस स्कूलों से उम्मीद की जा रही है कि वे नए दौर की जरूरतों के हिसाब से स्किल्ड, चुस्त और सक्षम प्रोफेशनल लोगों को तैयार करें। इसके चलते, पुरानी हो चुकी पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था को अब नतीजों पर आधारित व्यवस्था में बदलने की जरूरत तेजी से महसूस की जा रही है।”

नतीजों पर आधारित शिक्षा (OBE), शिक्षा का ऐसा मॉडल है जिसमें पाठ्यक्रम, सीखने-सिखाने की व्यवस्था और मूल्यांकन के साधन उनसे मिलने वाले नतीजों पर केंद्रित होते हैं। इसमें पाठ्यक्रम के अंत में छात्रों के लिए सिर्फ़ डिग्री के बजाय अपने ज्ञान का उच्च स्तर दिखाना जरूरी हो गया है। कुल मिलाकर पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था इस बात पर केंद्रित थी कि क्या पढ़ाया जा रहा है, जबकि OBE में ध्यान इस बात पर है कि छात्रों ने क्या सीखा।

आईएमएस गाजियाबाद में, नतीजों पर आधारित शिक्षा का फ़ोकस हर चरण में सीखने वालों पर होता है। शुरुआत से ही संस्था ने पुरानी व्यवस्थाओं से आगे बढ़कर मैनेजमेंट की शिक्षा को इस तरह से बढ़ाने में भरोसा किया है कि छात्रों को 21वीं सदी की औद्योगिक जरूरतों के हिसाब से स्किल्स दी जानी चाहिए और नए एल्गोरिदम के साथ आगे बढ़ना चाहिए। आने वाले कल के लिए बिज़नेस लीडर तैयार करने के सिद्धांत के चलते, हमारा फ़ोकस कॉर्पोरेट वर्ल्ड की मांगों और उम्मीदों को पूरा करने पर है, ताकि संभावित कर्मचारियों को महत्वपूर्ण स्किल्स के साथ तैयार किया जा सके।

हमारा जोर इस बात पर है कि छात्रों में गहन अनुशासन, जानकारी और बौद्धिक विस्तार जैसे जरूरी गुणों का पोषण हो। साथ ही, वे मिलकर काम करने और बेहतरीन संवाद करने के योग्य बने और कॉर्पोरेट वर्ल्ड के हिसाब से अच्छी तरह तैयार हों। तार्किक आधार पर सोचने, समस्याओं को हल करने और नई चीजों के बारे में रिसर्च करने में उनकी दिलचस्पी हो। क्रिएटिविटी और इनोवेशन के साथ-साथ इन्फॉर्मेशन और कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी में उनकी रूचि हो। साथ ही, वे सामाजिक रूप से जिम्मेदार और नैतिक मूल्यों वाले इंसान बनें और उनमें उद्योग स्थापित करने की मानसिकता बने।

रोजगार की वैश्विक संभावनाओं पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि ज्यादातर शीर्ष कंपनियां और अर्थव्यवस्था को गति देने वाले कारोबार मुख्य रूप से टेक इंडस्ट्री से जुड़े हैं। भविष्य में, नौकरी की तलाश करने वाले लोगों की कामयाबी मोटे तौर पर इस बात पर निर्भर करेगी कि वे टेक्नोलॉजी को किस तरह मैनेज करते हैं और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में होने वाले इनोवेशन से पैदा हुए अवसरों का कितना लाभ ले पाते हैं। दरअसल, दुनिया भर के संगठन डिजिटल वर्ल्ड में कदम बढ़ा रहे हैं। ऐसे में, संभावित कर्मचारियों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे डिजिटल वर्ल्ड को लेकर अपनी जानकारी बढ़ाएं और खुद को नई चीज़ों के लिए तैयार रखें।

आईएमएस गाजियाबाद में, उच्च स्तरीय ब्लूम की टेक्सोनॉमी पर आधारित पाठ्यक्रम है, जिसकी नियमित रूप से समीक्षा होती है और उसमें सुधार होता रहता है। इसके लिए कॉर्पोरेट वर्ल्ड के विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों की मदद ली जाती है, ताकि तेजी से बदलते कारोबारी परिदृश्य और डिजिटल टेक्नोलॉजी से चलने वाली डेटा आधारित दुनिया में पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता बनी रहे। पेशेवर दुनिया में कदम रखने वाले नए युवाओं में डिजिटल दौर के लिए उपयोगी, मैनेजमेंट से जुड़ी स्किल्स विकसित करने के लिए, मैनेजमेंट ऑफ़ चेंज, इनोवेशन ऐंड टेक्नोलॉजी, बिजनेस ऐनालिटिक्स, एचआर ऐनालिटिक्स, गूगल ऐनालिटिक्स जैसे कई विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

संस्था ने छात्रों की स्किल्स बेहतर बनाने के लिए कई तरह की पहल की हैं। इनमें सेंटर फॉर इनोवेशन ऐंड एंट्रेप्रिन्योरशिप, वैल्यू एडेड शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग प्रोग्राम, वैल्यू एडेड सर्टिफिकेशन प्रोग्राम, कंपीटेंसी मैपिंग, स्टूडेंट आउटरीच वगैरह शामिल हैं। छात्रों के लिए साइकोलॉजिकल काउंसिलिंग प्रोग्राम, डिपार्टमेंट क्लब्स ऐंड पर्सनल ऐंड प्रोफेशनल स्किल प्रोग्राम्स से युवा छात्रों को जीवन के लिए महत्वपूर्ण स्किल्स सीखने में मदद मिलती है। छात्रों को कॉर्पोरेट वर्ल्ड में काम करने के लिए तैयार करने के लिए कई पहल की गई हैं। इनमें प्री-प्लेसमेंट प्रीपेयर्डनेस कमिटी, प्लेसमेंट रेडीनेस एन्हांसमेंट प्रोग्राम, कॉर्पोरेट इंटरफेस सीरीज, सीएसआर ऐक्टिविटीज, वर्कशॉप वगैरह शामिल हैं। हमारी संस्था ने दुनिया के शीर्ष शिक्षण संस्थानों के साथ हाथ मिलाया है। यहां नियमित रूप से इंटरनैशनल स्टडी टूर, स्पेशल टॉक सीरीज, इंटरनैशनल कॉन्फ्रेंस, कॉन्क्लेव और समिट का आयोजन किया जाता है, ताकि ग्लोबल और कॉर्पोरेट इंटरफेस में छात्रों को सक्षम बनाया जा सके। संस्थान ने कई मशहूर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करने के लिए हाथ मिलाया है, ताकि आपसी तालमेल से अनुसंधान और अकादमिक क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की जा सके।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हम गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में जी रहे हैं, जहां संभावित कर्मचारियों से कॉर्पोरेट वर्ल्ड की अपेक्षाएं काफी ज्यादा हैं। वे अच्छे दिन अब पुराने दौर की बात हो गई है, जब कर्मचारियों को चीज़ें सीखने के लिए लंबा समय मिलता था और कंपनियां उनका हाथ थामे रहती थीं। आज कर्मचारियों से पहले ही दिन से बेहतरीन नतीजों की अपेक्षा की जाती है। शिक्षकों को यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि शिक्षा व्यवस्था का फोकस स्किल्स पर है और नतीजे इस व्यवस्था का औपचारिक हिस्सा है न कि मुख्य धारा की शिक्षा का विकल्प। ऐसा करने पर ही वे इस काबिल बन पाएंगे कि उनकी भूमिका सिर्फ़ जानकारी देने के बजाय नई चीज़ों के सूत्रधार बनने की हो।




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