आईआईएम रोहतक के डायरेक्टर धीरज शर्मा की नियुक्ति पर चल रहे विवाद पर केंद्र सरकार का चौंकाने वाला रुख सामने आया है। बार-बार इनकार करने के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने कोर्ट में मान लिया है कि धीरज शर्मा आईआईएम रोहतक के डायरेक्टर पद के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता मानदंड को पूरा नहीं करते थे, फिर भी उन्हें नियुक्ति दी गई। ये बात तब सामने आई है, जब धीरज शर्मा 5 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं और अपने दूसरे कार्यकाल की ओर हैं।
सोमवार को शिक्षा मंत्रालय (MoE) ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया था कि धीरज शर्मा को स्नातक स्तर पर सेकंड डिवीजन हासिल करने के बावजूद IIM-रोहतक का प्रमुख बनाया गया था। बता दें कि शर्मा ने इस साल 9 फरवरी को अपना कार्यकाल पूरा किया था।
यहां ये बात ध्यान देने वाली है कि आईआईएम डायरेक्टर पद पर चयनित होने के लिए कैंडीडेट के पास फर्स्ट डिवीजन के साथ स्नातक की डिग्री होना चाहिए। लेकिन शर्मा सेकंड डिवीजन से पास हुए थे।
इंडियन एक्सप्रेस ने पहली बार सितंबर 2021 में उनकी नियुक्ति के संबंध में इस कथित अनियमितता की बात उठाई थी और बताया था कि शर्मा ने पिछले साल तीन पत्रों के बावजूद मंत्रालय को अपनी स्नातक की डिग्री प्रदान नहीं की।
हैरानी की बात तो तब हुई जब शर्मा को आईआईएम अधिनियम के तहत इस साल 28 फरवरी को संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) द्वारा दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से नियुक्त किया गया।
बता दें कि शर्मा को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) की पूर्व मंजूरी के साथ नियुक्त किया गया था। एसीसी ने 10 फरवरी, 2017 को शर्मा के आईआईएम-रोहतक के निदेशक के रूप में पहले कार्यकाल को मंजूरी दी थी।
इसके बाद शर्मा की नियुक्ति को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि निदेशक ने अन्य बातों के अलावा अपनी शैक्षणिक योग्यता को गलत तरीके से पेश किया और वह पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं।
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