विज्ञापन की लाइन ‘डर के आगे जीत है’ तो आपने सुनी ही होगी।
विज्ञापन की लाइन ‘डर के आगे जीत है’ तो आपने सुनी ही होगी। किसी को सफल होने से रोकने में ‘डर’ एक बड़ा कारण होता है। डर अक्सर सपनों का सबसे बड़ा हत्यारा होता है। हम अपने सपनों का पीछा करने से बचते हैं क्योंकि हमें रास्ते में आने वाली बाधाओं का डर होता है। किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले ही हम आत्म-संदेह और चिंता के एक चक्रव्यूह में फंस जाते हैं और हम सफलता की डगर पर कभी आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं। लगातार डर में जीया गया जीवन यातायात जाम में फंसने के जैसा है। आप कभी भी आगे नहीं बढ़ते हैं और समय बीतने के साथ आप अधिक निराश हो जाते हैं। आप सोचते हैं कि अगर आप पूरी तरह से एक अलग रास्ता अपनाते तो चीजें अलग होतीं। हम अक्सर डर को अपने ऊपर हावी होने देते हैं। जब हम सक्रिय रूप से कुछ नहीं करते हैं तो यह एक आसान बहाना है जिसे हम खुद को बताते हैं।
मैं बेहतर नहीं हूं : आम तौर पर लोगों में सबसे अधिक डर होता है ‘मैं बेहतर या अच्छा नहीं हूं।’ ऐसे लोगों का मानना होता है कि दुनिया में उनसे बेहतर बहुत सारे लोग हैं जो सफलता के शिखर तक पहुंच सकते हैं। इस डर की वजह से ही वह किसी कार्य की शुरुआत नहीं करते हैं और अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाते हैं।
वैसे भी बेहतर की परिभाषा क्या है? यह परिभाषा भी हमारे लिए दूसरे तय करते हैं जो सही नहीं है। केवल आप ही अपनी वास्तविक क्षमताओं को जानते हैं। अगर कोई सोचता है कि आप ऐसा नहीं कर सकते, तो उसे गलत साबित करने की चुनौती के रूप में लें।
अगर मैं विफल हो गया तो.. : सफलता की राह में दुनिया का दूसरा बड़ा डर है ‘अगर मैं विफल हो गया तो..’। बहुत बड़ी संख्या में लोग किसी कार्य को करने का पहला प्रयास ही इस डर से नहीं कर पाते हैं। विफलता का डर, सफलता की चाह से अधिक हो जाता है। हमें यह समझने की जरूरत है कि हर विफलता के साथ सीखने, बढ़ने और आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। बेशक, किसी भी कार्य को करने के साथ हमेशा यह आशंका बनी रहती है कि उसमें विफल भी हो सकते हैं लेकिन इसकी वजह से कोई कार्य करना ही छोड़ दिया जाए यह सही नहीं है।
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