हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कार्रवाई कानून के मुताबिक होनी चाहिए। यदि अभिभावक उचित कारण बताते हैं तो प्रबंधन को उनके साथ नरम रवैया दिखाना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि राजस्थान के स्कूल संचालक फीस न भरने वाले अभिभावकों पर एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र हैं। कोर्ट ने कहा कि स्कूल प्रबंधन फीस व बकाया शुल्क की वसूली के लिए उचित कार्रवाई कर सकता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कार्रवाई कानून के मुताबिक होनी चाहिए। यदि अभिभावक उचित कारण बताते हैं तो प्रबंधन को उनके साथ नरम रवैया दिखाना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रवि की बेंच ने अपने फैसले में 35 हजार से ज्यादा निजी व गैर अनुदान प्राप्त स्कूलों को डिफॉल्टर अभिभवाकों के खिलाफ फैसले लेने की छूट दी है। इन स्कूलों का प्रबंधन उन लोगों से फीस वसूल कर सकता है जो मई में शीर्ष कोर्ट द्वारा इस बारे में की गई व्यवस्था की पालना करने में विफल रहे हैं।

स्कूल प्रबंधन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि मई में दिए गए आदेश का आशय फीस भुगतान के लिए अभिभावकों को राहत देने का था। किश्तों में फीस लेने की व्यवस्था इसी वजह से की गई थी। कोर्ट चाहती थी कि बच्चों के अभिभावकों पर बोझ न पड़े। बेंच से याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि फीस चुकाने की अंतिम तिथि निकल चुकी है, लेकिन इसके बाद भी कई लोग पैसा नहीं चुका रहे हैं।

सर्वोच्च अदालत ने तीन मई को इन स्कूलों को निर्देश दिया था कि वे अकादमिक वर्ष 2020-21 के दौरान 15 फीसदी कम फीस वसूलें। कोर्ट ने यह भी कहा था कि किसी विद्यार्थी को फीस का भुगतान नहीं करने के कारण पढ़ाई करने से रोका नहीं जाए। कोर्ट ने कहा था कि अकादमिक वर्ष की फीस 5 अगस्त 2021 के पूर्व छह समान किस्तों में अदा की जाए।

कोर्ट ने कहा कि यह फैसला उन अभिभावकों पर ही लागू है जो फीस चुकाने में आनाकानी कर रहे हैं। स्कूल मैनेजमेंट 3 मई के फैसले के मुताबिक एक्शन ले सकते हैं। मामले में राजस्थान की तरफ से एडवोकेट मनीष सिंघवी ने पैरवी की जबकि स्कूलों की तरफ से विकास सिंह, अजीम सैमुअल, डेजी हाना और विकास पॉल ने जिरह की। उनका कहना था कि बहुत से अभिभावक कोर्ट के आदेश को धता बताकर फीस नहीं भर रहे हैं।


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