पिछले दिनों स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध में यह बात सामने आई कि अपनी गलती स्वीकार करने वाले लोग जिंदगी में ज्यादा सफल होते हैं। शोध के दौरान लोगों का मनोवैज्ञानिक परीक्षण तथा विश्लेषण किया गया। इस शोध के माध्यम से पता चला कि जिन लोगों में अपनी गलती स्वीकार करने के साथ ही दूसरों के प्रति उत्तरदायित्व का भाव होता है, उन्हें दूसरे लोग आसानी से अपना नेता स्वीकार कर लेते हैं। शोध टीम के प्रमुख बेकी शौमबर्ग के अनुसार जिन लोगों में अपने संस्थान के प्रति की गई गलतियों को स्वीकार करने की भावना होती है, वे संस्थान की उम्मीदों पर ज्यादा खरे उतरते हैं।
दरअसल वास्तविकता यह है कि हम अपनी गलतियों को दोहराते रहते हैं। जब हमसे गलती हो जाती है तो सोचते हैं कि अब गलती नहीं करेंगे लेकिन हम दुनियादारी के झमेलों में उलझकर अपनी आदत नहीं बदल पाते और बार-बार गलती करते रहते हैं। सच तो यह है कि दुनियादारी के बिना हमारा काम भी नहीं चलता है। इसलिए दुनियादारी में उलझना गलत नहीं है। गलत है विचारशील न होना। यह हमें ही सोचना है कि हम सांसारिक दुनिया में रमकर कैसे विचारशील बन सकते हैं। अगर हम विचारशील होंगे तो पुन: गलती होने की संभावना कम हो जाएगी।
हम सभी अपनी जिंदगी में न जाने कितनी गलतियां करते हैं। मैंने काफी पहले कहीं पढ़ा था कि-‘इंसान गलतियां करता है, इसलिए वह अन्य प्राणियों से महान है।’ इस बात को अगर हम सतही तौर पर देखेंगे तो यह बात गलत लगेगी। भला गलती करने वाला प्राणी महान कैसे हो सकता है। लेकिन जब हम प्रसंग को डूबकर समझने का प्रयास करेंगे तो जल्दी ही हमें इस वाक्य में छिपा हुआ असली भाव समझ में आ जाएगा।
दरअसल इंसान गलतियां करता है लेकिन गलतियों से कुछ सबक भी लेता है। इंसान अपनी बुद्धि और विवेक के आधार पर ही अपनी पिछली गलतियों से कुछ सीखता है और भविष्य में ऐसी गलतियां न करने के प्रति सचेत रहता है। शायद इसलिए इंसान को महान कहा गया है। जो इंसान ऐसा नहीं करता, वह सफलता के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता। इंसान के पास अन्य प्राणियों से ज्यादा विकसित बुद्धि है।
इसलिए उससे यह आशा की जाती है कि वह अपनी गलतियों से सबक ले और सफलता के मार्ग पर आगे बढ़े। हालांकि यह दु:ख की बात है कि हममे से अधिकतर लोग अपनी गलतियों से सबक नहीं लेते हैं। शायद यही कारण है कि हमारी जिंदगी पुराने ढर्रे पर ही चलती रहती है। दुनिया में ऐसा कोई प्राणी नहीं है जो गलतियां न करता हो। इसलिए गलती करना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है बल्कि गलती से सबक न लेना जरूर आश्चर्यजनक है। इसी आश्चर्य के कारण हम अपनी जिंदगी में कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर पाते हैं। इसलिए यह जान लेना भी बहुत जरूरी है कि हमने कहां गलती की है। कई बार समय रहते हमें अपनी गलती का पता नहीं चलता है। जब हमें अपनी गलती का पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और हमारे हाथ कुछ नहीं लगता।
ऐसा भी होता है कि हमें अपनी गलती का एहसास हो जाता है लेकिन जानबूझकर हम अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। हम अपनी गलती को दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं। यह अच्छी तरह जानते हुए भी किसी और ने यह गलती नहीं की है, हम दूसरों पर गलती थोपने की एक और गलती कर बैठते हैं। गलतियों का यह चक्रव्यूह ही हमें सफलता से दूर ले जाता है। इसलिए गलती के एहसास के साथ-साथ गलती को स्वीकार करना भी उतना ही जरूरी है।
गलती स्वीकार न कर हम लोगों को अपने दंभी होने का परिचय देते हैं। हम सोचते हैं कि अपनी गलती पर परदा डालकर हम लोगों की नजरों में गिरने से बच जाएंगे लेकिन जब चोरी और ऊपर से सीनाजोरी वाली कहावत हम पर फिट बैठती है तो दूसरों की नजरों में हम और अधिक गिर जाते हैं। एक गलती पर परदा डालकर हम दूसरी गलती कर बैठते हैं। इस तरह हम लगातार गलती करते चले जाते हैं। इसलिए गलती पर परदा न डालकर हमें तुरंत अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए। इस तरह हम गलती के रास्ते पर आगे बढ़ने से बच जाएंगे तथा हमारा मन भी शान्त और नर्मल रहेगा।
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