पुस्तक गांधी के राम पुस्तक भर नहीं है बल्कि पिछले सात दशकों में गांधीवद के नाम पर हुये बौद्धिक अनाचार को उद्वेलित करने वाला दस्तावेज है। महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष पर पुस्तक लिखने वाले डॉ. अरुण प्रकाश को इसकी सुकीर्ति मिलेगी। यह कहना था प्रख्यात गांधीवादी चिंतक व गांधी भवन, दिल्ली विविद्यालय के निदेशक प्रो. रमेश भारद्वाज का, जोकि एनसीईआरटी के सभागार में आयोजित पुस्तक पर परिचर्चा व विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। आयोजन को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुये प्रो. भारद्वाज ने कहा कि विवेकानंद के बाद महात्मा गांधी अकेले महापुरुष हैं, जिन्होंने भारत बोध को समझा व जीया।

उन्होंने रामनाम की सर्वसुलभता का आम जन मानस में प्रचार औषधि के रूप में किया क्योंकि वे जानते थे कि अंग्रेजी दवायें सबको सुलभ नहीं हैं। कार्यक्रम में बोलते हुये भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि महात्मा गांधी हम सबके आदर्श हैं। उनके समय में सब तरफ गुलामी के अंधकार का साम्राज्य था, ऐसे में उन्होंने लोगों को जगाने के लिये रामनाम का आलंब लिया। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि महात्मा जी को जिन निर्णयों के लिये दोषी बताया जाता है उनके कई कारक थे और एक पिता के रूप में उन्होंने सर्वथा सही निर्णय लिया।

कार्यक्रम में अध्यक्षीय भाषण के दौरान अवध विवि के पूर्व कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि गांधी को लोग राजनीति संवाद के इतर देखते नहीं हैं, इससे उनके व्रत, तप और मूल्य दबे रह जाते हैं। गांधी जी गैर राजनीतिक व्यक्तित्व को लगभग दबा ही दिया गया है। परिचर्चा कार्यक्रम की शुरूआत एनसीईआरटी के सचिव मेजर हर्ष कुमार के संबोधन से हुई। इस मौके पर बिक्रम विविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एसएस पांडेय, जामिया के प्रो. गिरीश चंद्र पंत, इग्नू के प्रो. अनिता प्रियदर्शिनी, डीयू से डॉ. राहुल रंजन, डॉ. वेदमित्र शुक्ल, आईपीयू के डॉ. पवन विजय, साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय और ओम प्रकाश शुक्ल उपस्थित रहे।




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