राज्यसभा के पूर्व सांसद बृजलाल ने कहा है कि केंद्र के 89 सचिवों में से मात्र एक दलित है। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और विदेश सेवाओं के लिए लोगों को चुनने वाली परीक्षाओं के आंकड़े बताते हैं कि 11 लाख में से सिर्फ 180 दलित पास हो पाएं हैं। यह 0.01 प्रतिशत सफलता का पैमाना है जो बेहद कम है।
उन्होंने कहा कि ऐसे में 15 फीसदी आरक्षण पर भी दलितों के लिए बड़े पदों पर पहुंचने की परीक्षा पास करना बेहद कठिन होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है। ध्यान रहे कि बृजलाल राजनीति में आने से पहले भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रह चुके हैं। वह यूपी के डीजीपी रहे हैं।
सत्यतता है। मैंने यूपी बोर्ड हाई स्कूल में प्रदेश में 43rd,12 वीं में 10th, BSc इलाहबाद विश्वविद्यालय में 6th MSc Maths 1st क्लास से पास किया। 1976 Civil Service Interview में मात्र 20% अंक दिए गये। लिखित में अच्छे अंक के कारण IPS प्रथम प्रयास में चयनित हुवा। pic.twitter.com/ru32xM97Ts
— Brij Lal (@BrijLal_IPS) March 12, 2021
अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि यह सच है कि उन्होंने यूपी बोर्ड हाई स्कूल में प्रदेश में 43वीं, 12 वीं में 10वीं, BSc में छठी रैंक हासिल की थी। उन्होंने MSc Maths 1st क्लास से पास किया। लेकिन बावजूद इसके 1976 में उन्हें Civil Service Interview में मात्र 20% अंक दिए गए। लिखित में अच्छे अंकों के कारण ही IPS में वह पहले चांस में सिलेक्ट हो सके।
पीएसएन मूर्ति की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारत में 90 फीसदी उपनाम ऐसे होते हैं जिनसे जाति और धर्म उजागर हो जाते हैं। इस रिसर्च में पता चला है कि यूपीएससी की परीक्षाओं में जिन उम्मीदवारों ने जाति और धर्म से जुड़ी जानकारियां छुपा रखी थीं वो ज्यादा पास हुए। उन्होंने कहा कि सिविल सेवाओं की परीक्षाओं में प्री और मेन्स परीक्षा के दौरान उपनाम गुप्त रहता है लेकिन इंटरव्यू के दौरान ये पता चल जाता है जिससे दलितों से साथ भेदभाव होता है।
गौरतलब है कि उद्योग जगत का संगठन दलित इंडियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री सामाजिक संरचना के आधार पर एक ऐसी व्यवस्था की सिफारिश करने जा रहा है जिसमें लोगों के उपनाम को हटाने का सुझाव दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के निर्देश पर ये अध्ययन कराया जा रहा है। मामले से जुड़े अधिकारी के मुताबिक इस अध्ययन के तहत आजादी के बाद हुए विकास के कामकाज में दलितों के प्रतिनिधित्व को लेकर आंकडे जुटाए जा रहे हैं।
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