ट्विटर पर “#modi_rojgar_do”हैशटैग से कुछ घंटों पहले से किया गया ट्वीट काफी ट्रेंड कर रहा है। इसके जरिए पीएम मोदी से रोजगार मुहैया कराने की मांग की जा रही है। आलम यह है कि इस हैशटैग के जरिए 20 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी पोस्ट ट्विटर पर डाली हैं। ट्वीट्स की रफ्तार को देखकर लगता है कि मौजूदा सप्ताह के आने वाले दिनों में ट्ववीट्स की संख्या और ज्यादा बढ़ सकती है। इसे देखने के बाद अंदाजा हो जाता है कि अब GDP ग्रोथ नहीं बल्कि बढ़ती बेरोजगारी भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनने जा रही है।

सेंटर ऑफ महेश व्यास के आंकड़ों पर नजर डालें तो कोविड संकट से पहले यानि 2019-20 के वित्तीय वर्ष के दौरान भारत में 3.5 करोड़ लोग बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे थे। लेकिन कोविड संकट ने स्थित को विकराल बना दिया। पिछले एक साल में बहुत से लोगों ने अपना रोजगार खो दिया। हालांकि अर्थव्यवस्था के कुछ हद तक पटरी पर लौटने के बाद बहुत से लोगों को रोजगार मिले भी, लेकिन सरकार कितना भी मुंह छिपाए, लेकिन उसे लगातार गंभीर होती जा रही समस्या पर विचार तो करना ही पड़ेगा।

आंकड़े बताते हैं कि 2016 के बाद ऐसे लोगों की तादाद में तेजी से कमी आ रही है, जिनके पास नौकरी है। 2016-17 में इनकी संख्या 40.73 करोड़ थी। 2017-18 में यह घटकर 40.59 करोड़ रह गई तो 2018-19 में यह 40.09 तक सिमट गई। बावजूद इसके कि भारत की अर्थव्यवस्था इस दौरान धीमी पर ग्रोथ दिखा रही थी। मौजूदा समय की बात करें तो देश में तकरीबन 4.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जो रोजगार की तलाश कर रहे हैं। हालांकि समस्या इससे कहीं ज्यादा विकराल है।

भारत के जनसंख्या संबंधी आंकड़े को देखें तो पता चलता है कि हर साल दो करोड़ लोग ऐसे होते हैं जो 15-59 साल की वर्किंग एज पापुलेशन में शामिल होते हैं। लेकिन सारे काम नहीं तलाश करते। बहुत से काम न मिलने पर थक हारकर चुप बैठ जाते हैं तो महिलाओं के मामले में सामाजिक बाधाएं और कानून व्यवस्था की गिरती हालत घर में बैठने को मजबूर करती है। अगर ये सभी बाजार में काम तलाश करने आ जाएं तो बेरोजगारों की तादाद और बढ़ जाएगी। तब हर साल 1.5 करोड़ बेरोजगार लोगों की नई फौज सामने खड़ी हो जाएगी। हालंकि भारत की अर्थव्यवस्था ग्रोथ दिखा रही है, लेकिन रोजगार के सृजन के मामले में सरकार की सफलता बहुत ज्यादा सीमित है।

ऑक्सफोर्ड के विजय जोशी अपनी किताब में लिखते हैं कि कंपनियां ज्यादा उत्पादन करने लगेंगी तो GDP जाहिर तौर पर बढ़ेगी, लेकिन अपना काम तेज करने के लिए इससे वो लेबर को मशीन से रिप्लेस करेंगी। भारत में बेरोजगारी इससे और ज्यादा ही बढ़ेगी। 2021-22 के बजट में पीएम मोदी का मिनिमम गवर्नमेंट का नारा समस्या में और ज्यादा इजाफा करने जा रहा है। इससे सरकार की रोजगार सृजन में भूमिका और ज्यादा सीमित हो जाएगी। अपने मुनाफे के फेर में निजी क्षेत्र पहले से ही नौकरियों को खत्म करता जा रहा है। ऐसा लगता है कि वो इंतजार में है कि लोग अपना बजट बढ़ाकर बाजार से ज्यादा खरीद करें। उनके रुख को देखे तो लगता नहीं है कि साल-दो साल वो नई भर्तियां करने भी जा रही हैं।



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