400 मीटर की दौड़ 51.46 सेकेंड में पूरी कर पहला विश्व एथलेटिक्स मेडल भारत की झोली में डालने वाली हिमा दास की दौड़ वास्तव में बचपन से ही शुरू हो गई थी। एक समय जिस धावक के पास जूते खरीदने के पैसे नहीं थे आज वे ही भारत की युवा शक्ति का चेहरा हैं। हाल ही में उन्हे असम सरकार द्वारा पुलिस विभाग में डिप्टी का सम्मानित पद दिया गया है। आईये जानते हैं कैसे हिमा दास ने कांटों से भरे ट्रैक पर दौड़ कर न सिर्फ अपना बल्कि पूरे देश का सपना पूरा किया

हिमा का जन्म असम के एक छोटे से गांव ढिंग में 9 जनवरी, 2000 को हुआ था। वह एक गरीब किसान परिवार में पैदा हुई थीं। उनके पिता रंजीत दास के पास केवल दो बीघा जमीन थी। इसी जमीन पर खेती करके, वह परिवार के सदस्यों के पेट पालते थें।

हिमा ने अपनी शुरूआती पढ़ाई ढिंग पब्लिक हाई स्कूल से की। वह अपने पिता के खेत में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। जवाहर नवोदय विद्यालय के पीटी टीचर ने उनका खेल देख कर उन्हें रेसर बनने की सलाह दी। पैसे की कमी के कारण उनके पास अच्छे जूते भी नहीं थे। कोच निपुन दास की ट्रेनिंग पाकर जब उन्होंने जिला स्तर पर 100 और 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता, तो खुद कोच भी आश्चर्यचकित थे।
निपुन दास हिमा के साथ गुवाहाटी आए। हिमा ने यहां जिला स्तरीय प्रतियोगिता में सस्ते जूतों में दौड़ कर भी स्वर्ण पदक जीता। हिमा की रफ्तार देखकर निपुण ने उन्हें प्रोफेश्नल स्प्रिंटर बनाने का फैसला किया। हिमा ने 200 मीटर की दौड़ से शुरूआत की और बाद में 400 मीटर की रेस भी दौड़ने लगीं।

हिमा दास ने 2018 में IAAF वर्ल्ड अंडर -20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास रचा। बेहद आर्थिक तंगी से जूझने के बावजूद हिमा ने कभी हार नहीं मानी और आज देश की स्प्रिंट क्वीन कहलाती है।




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