23 जनवरी को देश के महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मनाई जाती है, जो एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में काम किया। अपने साहस और नेतृत्व कौशल के लिए जाने जाने वाले, बोस ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए भारतीय राष्ट्रीय सेना जिसे आजाद हिंद फौज के नाम से भी जाना जाता है, का गठन किया था। उनकी 125 वीं जयंती के अवसर पर, आइए हम भारत के देशभक्ति के प्रतीक के जीवन से जुड़ी कुछ बातें जानते हैं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म बंगाल प्रांत के कटक में 23 जनवरी 1897 को हुआ था। सुभाष के पिता का नाम जानकीनाथ और माता का प्रभावतीदेवी था। इनके पिता कटक के मशहूर वकीलों में से एक थे। अपने भाइयों और बहनों की तरह, साल 1902 में उन्होंने रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल से पहले प्रोटेस्टेंट यूरोपीय अंग्रेजी मीडियम स्कूल में एडमिशन लिया था। यह स्कूल कटक के मिशन रोड पर आज भी स्थित है। इसके बाद हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए कटक के ही दूसरे स्कूल, रेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया था। यह स्कूल नेताजी के घर से कुछ दी दूरी पर था लेकिन बावजूद इसके वे स्कूल होस्टल में रहा करते थे।

महज 16 साल की उम्र में, उन्होंने स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण की रचनाओं को पढ़ा और उनकी शिक्षाओं से प्रभावित हुए। वह विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। उनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। भारत विरोधी टिप्पणी करने वाले प्रोफेसर पर हमला करने के बाद बोस को प्रेसीडेंसी कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। हालांकि उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपील की थी कि वह वास्तव में हमले में शामिल नहीं थे।

यूरोप जाने से पहले उन्होंने 1918 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से आर्ट्स इन फिलॉसफी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में, वह ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय चले गए में 1919 , बोस के नेतृत्व में लंदन भारतीय सिविल सेवा देने के लिए (आईसीएस) परीक्षा और वह चुना गया था। हालांकि, दो साल बाद जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद सिविल सर्विसेज से इस्तीफा देकर भारत लौट आए थे।

सुभाष चंद्र बोस ने जब अंग्रेजों की नौकरी को ठुकराकर देश सेवा का प्रण लिया तो उस समय उनके पिता ने भी उनके फैसले का सम्मान किया। उन्होंने कहा कि- ‘जब तुमने देशसेवा का प्रण ले ही लिया है, तो कभी अपने कदमों को डगमगाने मत देना।’

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