New Education Policy 2020: भारत सरकार ने 29 जुलाई 2020 को 34 साल पुरानी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को बदलने का प्लान आधिकारिक तौर पर तैयार कर लिया है। साल 1986 के बाद अब नई शिक्षा नीति 2020 को अमल में लाने की तैयारी शुरू हो रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित न्यू एजुकेशन पॉलिसी (NEP), स्कूल में बड़े सुधार और शिक्षण सहित उच्च शिक्षा प्रदान करता है। NEP 2020 के कुछ सबसे बड़े सुधारों में, उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक एकल नियामक, डिग्री पाठ्यक्रमों में कई प्रवेश और निकास के विकल्प, एमफिल कार्यक्रमों को बंद करना, यूनिवर्सिटियों में एडमिशन के लिए कॉमन एंट्रेस एग्जाम और थ्री लैंग्वेज फार्मूला। पूरे भारत में नई शिक्षा नीति की अलग-अलग तरह से आलोचनाओं का दौर जारी है। जिनमें ज्यादातर लोगों ने इस नीति का स्वागत किया है और कुछ लोग कुछ चीजों का विरोध कर रहे हैं। विरोध नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा सूत्र का भी हो रहा है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा राज्यों पर थोपना कहा जा रहा है।

दरअसल, तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति का विरोध करने वालों का कहना है कि केन्द्र सरकार इसके माध्यम से हिन्दी और संस्कृत को थोपना चाहती है। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने रविवार को सारे भ्रम दूर करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति, 2020 के माध्यम से केन्द्र सरकार किसी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपेगी। उन्होंने तमिल भाषा में ट्वीट कर स्पष्टीकरण दिया है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री पोन राधाकृष्णन के एक ट्वीट पर निशंक ने अपने जवाब में कहा कि वह तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति लागू करने में पूर्व केंद्रीय मंत्री के मार्गदर्शन के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं एकबार फिर इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि केन्द्र सरकार किसी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपेगी।’ एम.के. स्टालिन नीत द्रमुक और अन्य विपक्षी दलों ने तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति का विरोध करते हुए इसकी समीक्षा की मांग की है।

बता दें कि, एनईपी ने पांचवी क्लास तक की पढ़ाई के लिए निर्देशों का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय भाषा में होने पर ‘जोर’ दिया है। वहीं आठवीं क्लास और उससे आगे के लिए इन्हें जारी रखना का सुझाव दिया गया है। नीति दस्तावेज में कहा गया है कि बच्चे अन्य भाषा के मुकाबले अपनी घरेलू भाषा में अधिक तेज़ी से सीखते और समझ लेते हैं। इन तीन भषाओं में से कम से कम दो भारत की नेटिव होनी चाहिए। लेकिन कोई भी भाषा किसी पर भी लागू नहीं होगी। एनईपी केवल शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा की सिफारिश करता है, और इसे अनिवार्य नहीं बनाता है।

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