Impact of Lockdown in India: COVID-19 महामारी देश के लिए स्वास्थ्य आपात के साथ-साथ, स्टार्टअप और SME के लिए भी बड़े संकट लेकर आई है। देश के 84% स्टार्टअप्स और SMEs का मानना है कि उनके पास अगले 3 महीने तक भी बाजार में बने रहने लायक फंड्स नहीं बचे हैं। मार्च के अंतिम सप्ताह में लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से, स्टार्टअप्स और SMEs ने राजस्व में भारी गिरावट दर्ज की है और अब इनमें से कई तो बाजार में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देश के कुछ बड़े वित्त पोषित स्टार्टअप्स तक ने छंटनी की घोषणा कर दी है और सर्वाइव करने की दौड़ में अपने खर्चे कम करने के लिए कर्मियों के वेतन में भी कटौती शुरू कर दी है।
सर्वे कंपनी LocalCircles द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार देश के केवल 16% स्टार्टअप और SMEs ही इस स्थिति में हैं कि वे अपने मौजूदा फंड्स पर अगले 3 महीने तक सर्वाइव कर सकें, जबकि अन्य 84% के सामने बाजार में बने रहने की चुनौती है। COVID-19 महामारी और उसके चलते लागू लॉकडाउन के प्रभाव को जाँचने के लिए किए गए 4-प्वाइंट सर्वे में देश भर के 28,000 से अधिक स्टार्टअप, एसएमई और उद्यमियों से प्रतिक्रियाएं ली गई हैं।
कई व्यवसायों ने पिछले 2 महीनों में अपने रेवेन्यू में 80-90% से अधिक की गिरावट दर्ज की है, जिससे उनके लिए अपने व्यवसाय को बनाए रखना मुश्किल हो गया है। अप्रैल से जून 2020 की तुलना करने से पता चलता है कि ‘आउट ऑफ फंड्स’ हो रहे स्टार्टअप्स और SMEs का प्रतिशत 27% से बढ़कर 42% हो गया है, जो कि एक चिंताजनक स्थिति है।
केन्द्रीय कैबिनेट ने इस संकट की स्थिति में MSME की मदद करने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की आपातकालीन क्रेडिट लाइन को मंजूरी दी है लेकिन बड़ी संख्या में स्टार्टअप MSME के तौर पर रजिस्टर होने के बावजूद ‘आत्मनिर्भर भारत स्कीम’ के तहत इस क्रेडिट का लाभ नहीं ले सकेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि केवल उन्हीं स्टार्टअप को इस योजना का लाभ मिल सकेगा जो कर्ज या लोन के साथ व्यापार शुरू कर रहे हैं, जबकि ज्यादातर स्टार्टअप आमतौर पर VC फंडिंग का विकल्प चुनते हैं, जो उन्हें इस सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए अयोग्य बनाता है।
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